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Tharparkar cattle थारपारकर नस्ल की नेत्रहीन गाय 2.81 लाख रु. में बिकी

भारत पशुधन सम्पन्न देश माना जाता है, इसलिए भारत में गाय के दूध की मांग सर्वाधिक रहती है भारत मे घोड़ो से लेकर पालतू कुते तक की बोली के बारे में सुना होगा किन्तु जब देश में देशी नस्ल की नेत्रहीन गाय की बोली लाखो रुपए में लग जाये तो आप अवश्य चौंक जाएंगे किन्तु यह सच है तारीख 23 जुलाई को पशुधन अनुसंधान केंद्र बीछवाल बीकानेर (राजुवास विश्वविद्यालय बीकानेर) में सम्पन्न हुई गाय एंव बछड़े की बोली में एक नेत्रहीन (अंधी ) थारपारकर गाय की नस्ल की बोली 2 लाख 81 हजार 500 रुपए लगी जो भारत के इतिहास में सरकारी फार्म पर लगी देशी गायों में सर्वाधिक बोली थी, नीलामी में गाय नंबर 126 नस्ल थारपारकर को सोजत पाली के प्रीतम
सिंह पशुपालक ने सर्वाधिक बोली लगाई यह बोली खास इसलिए थी क्योंकि एक अंधी यानी नेत्रहीन गाय की सर्वाधिक बोली थी यह बोली गाय  की महत्व को दर्शाती है

बल्कि थारपारकर गायो की बढ़ती लोकप्रियता का भी परिचायक थी इसके साथ इसी नस्ल के बछड़े की सर्वाधिक बोली 1 लाख 5 हजार रुपए लगी जो भी सरकारी फार्म की अब तक की सर्वाधिक बोली थी, देश में गाय की कुल 50 स्वदेशी नस्ले है जबकि राजस्थान की प्रसिद्ध थारपारकर गाय की मांग सर्वाधिक है राजस्थान में पशुधन में सफेद सोना के नाम से गाय की प्रसिद्ध नस्ल थारपारकर की मांग आज देश भर में है सबसे अच्छा और ताजा उदाहरण इस से बड़ा क्या हो सकता है पशुधन अनुसंधान केंद्र बीकानेर में हुई बोली में थार गाय की कीमत 2 लाख 81 हजार 500 रुपए तक पहुंच गयी इससे पहले पूर्व में सीसीबीएफ सूरतगढ़ फार्म में भी एक गाय की कीमत दो लाख 82 हजार गयी थी जो उस समय की सर्वाधिक थी इस पूर्व चाँदन फार्म में भी 1 लाख 51 हजार में थारपारकर गाय बिकी थी दोनों उल्लेखित बोलिया काफी समय तक चर्चा का विषय बनी रही आज देश में गायों की बात करे तो सर्वाधिक मांग थारपारकर गाय की नस्ल की है क्योंकि यह दुधारू गाय की श्रेणी में आने वाली नस्ल दूध उत्पादन के मामले विदेशी गायों को पीछे छोड़ा है राजस्थान के धोरों में में थार गाय ने प्रतिदिन 25 लीटर तक दूध देकर नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

थारपारकर गाय क्यों है विशेष ? सफेद रंग, लंबी कद काठी है थारपारकर की मुख्य पहचान है मुख्य रूप से पड़ोसी देश के सिंध प्रांत में पाई जाने वाली थारपारकर नस्ल राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरुप है। भीषण गर्मी व अकाल के समय भी थारपारकर गाय अपना जीवन बचाने में अन्य गायों के मुकाबले ज्यादा सक्षम रहती है, शांत व्यवहार थारपारकर पशुधन की पहचान है, अधिक दुग्ध उत्पादन के साथ थारपारकर गाय का दूध रोग प्रतिरोधक क्षमता वाला होता है। थारपारकर नस्ल के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए राजस्थान में विभित्र अनुसंधान केंद्रों पर कार्य हो रहा है एक थारपारकर पशु पूरे परिवार का खर्चा वहन कर सकता है।

इनका कहना है 

देश में कोरोना काल के बाद देशी गायों के दूध के महत्त्व के बारे में जागृति आई हैं और देशी गाय के दूध की मांग बढ़ी हैं जिस वजह से पशुपालकों में देशी गाय पालन में बढ़ोतरी हुई है पशु पालन करने वाले प्रत्येक पशुपालक के लिए एक शुभ संकेत हैं साथ थारपारकर गाय को सर्वाधिक बोली गाय के महत्व को दर्शाती
है।

डॉ. शंकर लाल खीचड सहायक आचार्य (एलपीएम) स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर

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