टमाटर की खेती कैसे करें

टमाटर की पैदावार को लेकर कई सवाल उठ रहे होंगे जैसे, टमाटर की खेती है क्या, हाइब्रिड टमाटर की खेती कैसे की जाती है, टमाटर की खेती कैसे और कब करें।

टमाटर की खेती कैसे करें
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जिसमें हम सबसे पहले बात करेंगे कि टमाटर होता क्या है? टमाटर, आलू, प्याज के बाद दुनियाभर में दूसरे नंबर की फसल मानी जाती है। इतना ही नहीं भारत देश की हर रसोई घर में बनने वाले भोजन में टमाटर का इस्तेमाल होता है। भारत देश दुनिया में टमाटर उत्पादक व उपभोक्ता में दूसरा स्थान रखता है। टमाटर को आप कच्चा या पकाकर भी खा सकते हैं। बात करें इसमें विटामिन की तो टमाटर में ए-सी-पोटाशियम और अन्य खनिज पदार्थ भरपूर मात्रा में आपको मिलेंगे। टमाटर की पैदावार उतर प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, उड़ीसा, महाराष्टÑ मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में होती है। बात पंजाब राज्य की करें तो इसमें रोपड़, जालंधर, होशियारपुर और अमृतसर जिले शामिल हैं जहां किसान टमाटर की पैदावार कर रहे हैं।

मिट्टी कैसी हो

टमाटर एक ऐसी फसल है जो किसानों को अच्छी आमदनी दे सकती है। लेकिन इसके लिए किसानों को सही पैदावार के लिए मिट्टी की जानकारी होना बेहद जरूरी है। वैसे तो टमाटर एक ऐसी फसल है जो अलग-अलग मिट्टी में हो सकती है। जैसे रेतली मिट्टी, चिकनी, दोमट, काली, लाल मिट्टी इत्यादि। इन मिट्टी में पानी निकासी आसानी से हो जाती है। इसलिए इन मिट्टी में टमाटर की पैदावार की जा सकती है। किसान भाईयों को टमाटर की फसल उगाने से पहले इस बात की जानकारी भी होनी चाहिये कि मिट्टी का पीएच 7-8.5 हो। अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी फायदेमंद हो सकती है।

टमाटर की अच्छी पैदावार लेने के लिए किसानों को सबसे पहले जमीन की अच्छी प्रकार से जुताई करनी होगी। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए किसान चार से पांच बार खेत की जुताई करें। उसके बाद मिट्टी को समतल करें। मिट्टी के कीड़ों व जीवों को खत्म करने के लिए धूप अच्छी प्रकार से लगाएं। पारदर्शी पॉलीथीन की परत भी इस कार्य के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। पॉलीथीन की परत सूरज की किरणों को सोखती हैं, जिससे कि खेत की मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है और मिट्टी टमाटर की फसल की अच्छी पैदावार के लिए तैयार हो जाती है।

उर्वरक की मात्रा

इस बात का ध्यान रखें कि इस फसल में पोषक तत्वों की जरूरत अधिक होती है। खेती से पहले जब आप जुताई करते हैं तो प्रति हेक्टेयर खेत में 25 से 30 गाड़ी गोबर की खाद को तीन सप्ताह पहले डाल कर मिट्टी में अच्छी प्रकार से मिला दें। इस फसल में गोबर की खाद के अलावा रासायनिक खाद भी जरूरी होती है। इस लिए किसान खेतों में जुताई के समय नाइट्रोजन, पोटाश, फास्फोरस का छिड़काव भी जरूर करें।

बुआई का समय

वैसे तो टमाटर की फसल साल में तीन बार तक ले सकते हैं। लेकिन टमाटर का अनुकूल समय सर्दी का है। अगर किसानों को जनवरी में टमाटर की रोपाई करनी है तो इसके लिए आपको नवम्बर महीने में नर्सरी तैयार करनी होगी। पौधों की रोपाई जनवरी के दूसरे सप्ताह में करनी होगी। वहीं बात गर्मी के मौसम की करें तो दिसंबर या जनवरी में टमाटर की बुआई की जा सकती है।

सिंचाई ; इसमें किसानों को सही संतुलन का ध्यान रखना होगा। ज्यादा सिंचाई टमाटर की फसल को नुक्सान पहुंचा सकती है। इसके लिए किसानों को शीत मौसम के दौरान 12 से 18 दिनों के अंतराल में टमाटर की फसल में सिंचाई करनी चाहिये। जबकि बात अगर गर्मी के मौसम की करें तो इस मौसम में किसानों को 5-10 दिनों के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिये।

खरपतवार नियंत्रण ;

। यदि किसानों के खेतों में खरपतवार समस्या आए तो इसके नियंत्रण के लिए लासो-2 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर कि दर से प्रतिरोपण से पूर्व डालना चाहिए। वहीं

रोपण के 4-5 दिन बाद स्टाम्प 1.0 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से इस्तेमाल किया जाए तो किसान टमाटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण कर सकते हैं, इससे ऊपज पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है।

पौधे फल देना शुरू ; टमाटर की पौध लगाने के बाद 60-70 दिनों में फल मिलना शुरू हो जाएगा। जब खेत में टमाटर हल्के लाल रंग के हो जाएं तो किसानों को तोड़ लेना चाहिये। जिसके बाद किसानों को टमाटर के आकार के अनुसार छंटाई कर लेनी चाहिये। इन टमाटरों को ऐसी टोकरियों व बॉक्सों में रखना चहिये जिसमें हवा गुजरती रहे। लंबी दूरी तक टमाटरों को अगर ले जाना है तो किसान भाई इन्हें ठंडा रखे ताकि ये खराब होने से बच सकें।

टमाटर की किस्में ; देसी किस्म: पूसा रूबी, पूसा-120, पूसा शीतल, पूसा गौरव, अर्का सौरभ, अर्का विकास, सोनाली

संकर किस्म: पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा हाइब्रिड-4, अविनाश-2, रश्मि तथा निजी क्षेत्र से शक्तिमान, रेड गोल्ड, 501, 2535 उत्सव, अविनाश, चमत्कार, यूएस 440 आदि।

कीट एवं रोग ; प्रमुख कीट- हरा तैला, सफेद मक्खी, फल छेदक कीट एंव तम्बाकू की इल्ली

प्रमुख रोग-आर्द्र गलन या डैम्पिंग आॅफ, झुलसा या ब्लाइट, फल संडन

रोग नियंत्रण ; गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।

पौधशाला की क्यारियां भूमि धरातल से ऊंची रखे एवं फोर्मेल्डिहाइड द्वारा स्टरलाइजेशन करलें।

गोबर की खाद में ट्राइकोडर्मा मिलाकर क्यारी में मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।

पौधशाला की मिट्टी को कॉपर आॅक्सीक्लोराइड के घोल से बुवाई के 2-3 सप्ताह बाद छिड़काव करें।

पौधरोपण के समय पौध की जड़ों को कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा के घोल मे 10 मिनट तक डुबो कर रखें।

पौधरोपण के 15-20 दिन के अंतराल पर चेपा, सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स के लिए 2 से 3 छिड़काव इमीडाक्लोप्रिड या एसीफेट के करें। माइट की उपस्थिति होने पर ओमाइट का छिड़काव करें।

फल भेदक इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली के लिए इन्डोक्साकार्ब या प्रोफेनोफॉस का छिड़काव ब्याधि के उपचार के लिए बीजोंपचार, कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब से करना चाहिए। खड़ी फसल मेंं रोग के लक्षण पाए जाने पर मेटालेक्सिल+मैन्कोजेब या ब्लाईटॉक्स का घोल बनाकर छिड़काव करें। चूर्णी फंफूद होने सल्फर घोल का छिड़काव करें।

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