मां का दूध: जहर बन रहा अमृत, मां के दूध तक पहुंच रहा कीटनाशक

मां का दूध: जहर बन रहा अमृत, मां के दूध तक पहुंच रहा कीटनाशक
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मां का दुध: जहर बन रहा अमृत, मां के दूध तक पहुंच रहा कीटनाशक

मां का दूध बच्चों के लिए अमृत माना जाता है। बच्चे का पहला आहारए जो पोषक तत्वों और शुद्धता के मामले में कुदरत की अनमोल सौगात के समान है।

अफसोस कि बात यह है कि कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल और मिलावटी खानपान के चलते न केवल मां के दूध में मौजूद पोषक तत्वों में कमी आई हैए बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर भी जोखिम बढ़ गए हैं।

खेत खजाना, जयपुर। मां के दूध से ज्यादा पौष्टिक कोई दूसरी चीज नहीं लेकिन कीटनाशकों और रासायनिक खादों से तैयार अन्न इस पर बुरा असर डाल रहा है। इस अन्न के जरिए मां के दूध में भी ऐसे तत्व घुल चुके हैं। जो गम्भीर बीमारियों के जनक है। ये तत्व ;कीटनाशीद्ध दूध के जरिए शिशु के शरीर में भी जाते हैए जो शिशु के पोषण के लिए खतरा है। राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में एक शोध में इसकी पुष्टि हो चुकी है।

रायसिंहनगर उपखंड में विभिन्न तबके की 300 से अधिक महिलाओं पर करणपुर निवासी जीव विज्ञान प्रोफेसर नीना हांडा ने यह शोध किया। इसमें शहरी व ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को शामिल किया गया। शोध के लिए मां के दूध के जो नमूने लिए गएए उनमें कीटनाशको की मात्रा ज्यादा पाई गई शोध के निष्कर्ष के मुताबिक शहरी क्षेत्र की महिलाओं के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के दूध में अधिक कीटनाशक पाए गए।

पशुओं पर सीधा असर

कृषि अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि बीकानेर क्षेत्र में मूंगफली पर रासायनिक खाद और पेस्टिसाइड का छिड़काव होने मूंगफली के चारे के जरिए पशुओं के शरीर तक कीटनाशी पहुंचने का आशंका रहती है। इससे पशुओं के दूध में भी कीटनाशी का अंश आने का खतरा रहता है। हरे चारे पर कीटनाशी के छिड़काव का असर भी पशुओं के दूध पर आता है। कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान विभाग के अनुसार फसल पर पेस्टिसाइड और कीटनाशी का उपयोग करने पर सोइल हेल्थ पर असर पड़ता है। माइको ऑर्गेनिज्म कम हो जाते हैं। इससे फसल की प्राकृतिक हेल्थ प्रभावित होती है। फसलों के रक्षक जीव भी मर जाते हैं। इससे प्रकृति का संतुलन भी बिगड़ रहा है।

अत्र में सामने आ रहा स्वाद का अंतर

बीकानेर के स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉण् पीएस शेखावत के अनुसार फसलों पर कीटनाशी के अंधाधुंच छिड़काव और रासायनिक खादों के इस्तेमाल का असर अनाज पर पड़ता है। अगिनिक और फर्टिलाइजर की खेती से उत्पादित गेहूं आदि को लेकर विश्वविद्यालय स्तर पर काम किया तो दोनों के स्वाद में अंतर पाया गया।

कैंसर रोगी मिलना सबसे बड़ा प्रमाण

आचार्य तुलसी कैंसर रिसर्च सेंटर और अस्पताल बीकानेर में कैंसर के सर्वाधिक रोगी पड़ोसी राज्य पंजाबए हरियाणा और श्रीगंगानगर.हनुमानगढ़ जिले से आ रहे हैं। अभी तक बीकानेर जिले में अनकमांड एरिया के चलते ऑर्गेनिक खेती होती रही है। पिछले कुछ वर्षों में यहां पॉली हाउसए सिंचाई के साधन विकसित होने से तेजी से पेस्टिसाइड का उपयोग बढ़ा है। इसी का नतीजा है कि यहां बीकानेर जिले से कैंसर के रोगी बढ़ने लगे हैं।

समझना मुश्किल नहीं साल दर साल खानपान में मिलावट ओर बढ़ ही रही है। यह कटु सच है कि कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल आने पीढ़ियों को रु ग्ण और कमजोर बना रहा है। बावजूद इसके आज हर चीज की शुद्धता पर सवाल उठ रहे हैं। हवा पानी भी जानलेवा स्तर तक प्रदूषित हो चुके हैं। देखा जाए तो चिकित्सकीय ही नहींए नैतिक दृष्टि भी अनुचित है। कीटनाशकों के इस्तेमाल से लेकर मिलावट के खेल तक, देश की भावी पीढ़ी को बीमारियों के जाल में फंसाने वाली गतिविधियों पर सख्ती जरूरी है। आवश्यक यह भी है कि ऐसा करने वाले लोग भी अपनी मानवीय जिम्मेदारी को समझें।

राजस्थान पत्रिका से यह लेख लिया गया है ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा जागरूक होकर इस विकट परिस्थिति पर ध्यान दें । 

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