इस बार चारे की मांग बढ़ी, 4 से 5 हजार प्रति एकड़ बिक रहे फाने (तुड़ी)

इस बार चारे की मांग बढ़ी, 4 से 5 हजार प्रति एकड़ बिक रहे फाने (तुड़ी)
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सुखद • प्रदेश में फाने जलाने की घटनाओं में कमी, किसान बना रहे ज्यादा तुड़ी

फाने कम जलाने से पर्यावरण में होगा सुधार, भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी

सूखे चारे की बढ़ी मांग व रेट के कारण इस बार किसान फाने जलाने से गुरेज कर रहे हैं। वे फानों न जलाकर उसका तूड़ा बना रहे हैं। क्योंकि फानों के प्रति एकड़ रेट एक साल में ही करीब दोगुने हो गए हैं। पिछले साल तक गेहूं के प्रति एकड़ फानों का प्रदेश के अधिकांश जिले में रेट 2 से ढाई रुपए था। जो इस साल बढ़कर 4 से 5 हजार से भी ज्यादा पहुंच गया है।

इसी तरह से तूड़े के प्रति डंफर रेट जो पिछले साल 4 हजार के आसपास थे वे अब 5 हजार से अधिक हो गए हैं। इसका परिणाम यह है कि इस बार में प्रदेश में फाने जलाने की घटनाओं में कमी आई है। पिछले साल 20 अप्रैल तक प्रदेश में 118 जगहों पर फाने जलाए गए थे। जबकि इस बार 91 जगहों पर ही फाने जले हैं। हालांकि गेहूं के फानों में आग लगाने की यह प्रथम स्टेज है। क्योंकि अभी भी गेहूं की कटाई का काम बाकी है।

अब तक सिरसा में सबसे अधिक 29 जगहों पर जगह जलाए फाने: इन दिनों प्रदेश में रोजाना 8 से 10 जगहों पर गेहूं के फानों में आग लगाई जा रही है। 20 अप्रैल को प्रदेश में 8 जगहों पर ही फाने जलाए गए। प्रदेश में फानों में आग लगाने में फिलहाल सिरसा जिला पहले स्थान पर है। यहां अब तक 29 जगहों पर फाने जलाए जा चुके हैं। जबकि पिछले साल 5 जगह ही फाने जलाए थे। इसी तरह से करनाल, कुरुक्षेत्र, जींद कैथल जहां पिछले सालों में सबसे अधिक गेहूं के फाने जलाए थे। इस साल कम फाने जलाने की घटनाएं सामने आई हैं।

20 अप्रैल तक पिछले वर्ष 118 जगहों पर जलाए गए थे फाने

91 जगह इस बार जलाए गए, सिरसा मैं सबसे अधिक 29 जगह जलाए

किसानों की जागरूकता और मांग बढ़ने से लगी जलाने पर रोक

गेहूं के फाने जलाने में आई कमी का बड़ा कारण किसानों में जागरुकता आने के साथ-साथ पशुओं के लिए सूखे चारे की मांग बढ़ना है। सूखा चारा झज्जर इस साल काफी महंगा हो गया है। इसके कारण किसान गेहूं के फानों में आग न लगाकर तुड़ा बनवा रहे हैं। पिछले सालों में गेहूं की हाथ से कटाई होती थी और फिर थ्रैसिंग से अच्छा तूड़ा बनता था। जो प्रति एकड़ ज्यादा निकलता था। लेकिन अब अधिकांश गेहूं की कटाई कंबाइन से होने के कारण प्रति एकड़ कुरुक्षेत्र तूड़े का उत्पादन कम होता है। इसके चलते तूड़े की डिमांड काफी बढ़ी हुई है।

-डा. कर्मचंद, कृषि उपनिदेशक कैथल। -

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