किसानों के हिस्से में अंतहीन इंतजार ही क्यों? किसान तकनीक से भी हारे, सिस्टम से भी.....

किसानों के हिस्से में अंतहीन इंतजार ही क्यों? किसान तकनीक से भी हारे, सिस्टम से भी.....
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किसानों के हिस्से में अंतहीन इंतजार ही क्यों? किसान तकनीक से भी हारे, सिस्टम से भी.....

खेत खजाना: मंडियों के बाहर ट्रॉलियों की कतारें हैं। ट्रॉलियों में किसानों को मेहनत है। उनके हिस्से में एक लंबा और थकाने वाला इंतजार है। किसान तकनीक से भी हारे और सिस्टम से भी। पहले पंजीकरण पोर्टल की पेचीदगियों से संघर्ष, फिर सिस्टम से कोई नहीं सोचता कि पंजीकरण के हिसाब से शेड्यूल बनाकर किसानों को बुला लिया जाए ताकि वे अंतहीन इंतजार में खड़े कभी मंडी के गेट की तरफ तो कभी आसमान में छाए बादलों की तरफ ना देखते रहें।

हमारे कृषि प्रधान हरियाणा की सरकार चमचमाते चंडीगढ़ में बैठती है। उसे हरियाणा में तकलीफें भुगत रहे किसानों की समस्याएं दिखेंगी भी कैसे? सरकार को तो यह तक पता नहीं चला कि हमारे किसान इतनी सरसों उपजा देंगे और उपजा देंगे तो मंडियों में ले भी आएंगे। अब सरकार के पास क्या है? बहाने बहाने और बहाने बारदाने का बहाना, मजदूरों की कमी का बहाना, सरसों में सफेद दाने का बहाना इन बहानों बहानों में ही खरीद की तारीख निकल जाएगी और फिर किसानों के हिस्से में एक नवा संघर्ष किसी एक मंडी से भी संतुष्ट किसानों की तस्वीरें नहीं आ रहीं मंडियों से सरकारी विफलता की तस्वीरें जरूर आ रही हैं।

खुले में पड़े गेहूं से भरे लाखों बैगों की यहां भी विफलता के कारण बहुत सारे है लेकिन समाधान नहीं है। यहां भी तकलीफें किसानों को ही झेलनी हैं। भुगतान में देरी की क्या आपको आश्चर्य नहीं होता कि हर साल बेहिसाब गेहूं उपजाने वाले राज्य की मंडियों में गेहूं को रखने के लिए हमारा सिस्टम पर्याप्त छत उपलब्ध नहीं करवा पाया है ? ये तस्वीरें अब बदलनी चाहिए क्योंकि मौसम भी बदल रहा है। हर रोज बदल रहा है और डरा भी रहा है।

अरविन्द चोटिया, संपादक हिसार की कलम से

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