कैसे होती है केले की खेती, क्या लागत है और कितना मिलता है प्रति एकड़ मुनाफा, जानिए पूरा प्रोसेस

by

Khetkhajana

कैसे होती है केले की खेती, क्या लागत है और कितना मिलता है प्रति एकड़ मुनाफा, जानिए पूरा प्रोसेस

केले से हम आप बहुत अच्छी तरह वाकिफ है. अपने देश में केले की 500 से अधिक किस्म उगाई जाती है. कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि केले की खेती समुद्र की सतह से 2000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है. केले की खेती के लिए आर्दश तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस है. अत्यधिक सर्दी और ज्यादा गर्मी दोनों ही केले के पौधों के लिए हानिकारक हैं. किसान इस खेती से एक हेक्टेयर में 60 टन केले उगा सकते हैं.

अगर एक बीघे में केले की खेती करते हैं तो 50 हजार रुपये के करीब लागत आती है और दो लाख रुपये तक की बचत हो जाती है. खास बात ये है कि बिहार इलाके में जो केले की खेती हो रही है वो जैविक है. यहां के किसान गोबर के खाद का इस्तेमाल करते हैं. केले की कटाई के बाद जो भी इसका कचरा बचता है उसे खेत से बाहर नहीं फेंका जाता है, उसे खेत में ही खाद के रूप में तब्दील कर दिया जाता है. ये खेत की उपज क्षमता को बढ़ाता है.

आइए जानें केले की खेती के बारे में…

डाक्टर सिंंह बताते हैं कि सबसे पहले जमीन के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए. केले की खेती कई तरह की भूमि में की जा सकती है बशर्ते उस भूमि में पर्याप्त उर्वरता, नमी एवं अच्छा जल निकास हो.

किसी भी मिट्टी में केला की खेती के लिए उपयुक्त बनाने के लिए आवश्यक है कि मृदा की संरचना को सुधारा जाय, उत्तम जल निकास की व्यवस्था किया जाय.केला 4.5 से लेकर 8.0 तक पी.एच मान वाली मिट्टी में उगाया जा सकता है.

एक एकड़ में कितना मुनाफा

केले के बारे में कहा जाता है कि इसकी खेती सही ढंग से करें तो मुनाफा कई गुना तक बढ़ जाता है. सही खेती के लिए कहा जाता है कि पौधे से पौधे के बीच का गैप 6 फीट होना चाहिए. इस लिहाज से एक एकड़ में 1250 पौधे आसानी से और सही ढंग से बढ़ते हैं. पौधों के बीच की दूरी सही हो तो फल भी सही और एकसमान आते हैं.

READ MORE  Wheat Crop : सिरसा जिले में दो लाख 47 हजार मीट्रिक टन हुई गेहूं की आवक

लागत की जहां तक बात है तो प्रति एकड़ डेढ़ से पौने दो लाख रुपये तक आती है. बेचने की बात करें तो एक एकड़ की पैदावार 3 से साढ़े तीन लाख रुपये तक में बिक जाती है. इस लिहाज से एक साल में डेढ़ से दो लाख रुपये तक का मुनाफा हो सकता है.

500 प्रजातियां देश में उगाई जाती हैं

भारत में लगभग 500 किस्में उगायी जाती हैं लेकिन एक ही किस्म का विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नाम है. राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पास केला की 79 से ज्यादा प्रजातियां संग्रहित हैं.

केला का पौधा बिना शाखाओं वाला कोमल तना से निर्मित होता है, जिसकी ऊचाई 1.8 मी0 से लेकर 6 मी0 तक होता है.

इसके तने को झूठा तना या आभासी तना कहते हैं क्योंकि यह पत्तियों के नीचले हिस्से के संग्रहण से बनता है. असली तना जमीन के नीचे होता है जिसे प्रकन्द कहते हैं. इसके मध्यवर्ती भाग से पुष्पक्रम निकलता है..

ये सकर पतली व नुकीली पत्तियों वाले (तलवार की तरह) होते है. देखने में कमजोर लगते है, परन्तु प्रवर्धन के लिए अत्यधिक उपयुक्त होते हैं.

वाटर संकर यानी चौड़ी पत्ती वाले सकर

यह सकर चौडी पत्तियों वाले होते हैं. देखने में ये मजबूत लगते हैं लेकिन आन्तरिक रूप से ये कमजोर होते हैं. प्रवर्धन हेतु इनका प्रयोग वर्जित है. सकर सदैव स्वस्थ उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों के पौधों से ही लेना चाहिए जिसमें रोग एवं किड़ों का प्रकोप बिल्कुल न हो.

READ MORE  नए मॉड्यूल से होगी ग्रुप ए, बी, सी और डी की भर्ती, ये होगा फायदा

दो तीन माह पुराना ओजस्वी सकर प्रवर्धन हेतु अच्छा होता है. केले के प्रकन्द से ही नए पौधे तैयार हो सकते हैं. बहुत अधिक पौधे जल्द तैयार करने के लिए पूरा प्रकन्द या इसके टुकड़े काटकर प्रयोग में लाते हैं.

नए जमाने में केले की खेती

डाक्टर एस के सिंह बताते हैं कि पिचेळ कुछ वर्षो से ऊतक संवर्धन (टिसु कल्चर) विधि द्वारा केले की उन्नत प्रजातियों के पौधे तैयार किये जा रहे हैं. इस विधि द्वारा तैयार पौधों से केलों की खेती करने के अनेकों लाभ हैं.

ये पौधे स्वस्थ, रोग रहित होते है. पौधे समान रूप से वृद्धि करते है. अतः सभी पौधों में पुष्पन, फलन, कटाई एक साथ होती है, जिसकी वजह से विपणन में सुविधा होती है.

फलों का आकार प्रकार एक समान एवं पुष्ट होता है. प्रकन्दों की तुलना में ऊतक संवर्धन द्वारा तैयार पौधों में फलन लगभग 60 दिन पूर्व हो जाता है.

केला की खेती से अधिकाधिक आय प्राप्त करने हेतु खेत की तैयारी, बाग लगाने का समय, पौधे, तथा पंक्ति से पंक्ति दूरी, सकर का चुनाव या ऊतक सवर्धन द्वारा तैयार पौधों का चयन इत्यादि बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना आवश्यक होता है.

भूमि की तैयारी

30 x30 x 30 सें. मी. या 45 x 45 x 45 सें. मी. आकार के गड्ढें, 1.8 x 1.8 मीटर (बौनी प्रजाति हेतु) या 2 x2 मीटर (लम्बी प्रजाति हेतु) की दूरी पर खोद लेते हैं. गड्ढा खुदाई का कार्य मई-जून में कर लेना चाहिए. खुदाई के उपरान्त उसी अवस्था में गड्ढों को 15 दिन के लिए छोड़ देना चाहिए. कड़ी धुप की वजह से हानि कारक कीट, फफूँद, जीवाणु व कीट नष्ट हो जाते हैं.

 

गड्ढों की मिट्टी 20 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद (कम्पोस्ट) एक किलो अंडी की या नीम की खल्ली, 20 ग्राम फ्यूराडान मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा गड्ढा भर देना चाहिए. समस्याग्रस्त मृदा में इस मिश्रण के अनुपात को बदला जा सकता है जैसे, अम्लीय मृदा में चूना, सोडीयम युक्त मृदा में जिप्सम तथा उसर मृदा में कार्बनिक पदार्थ एवं पाइराइट मिलाने से मृदा की गुणवत्ता में भारी सुधार होता है.

READ MORE  सरकार ने किसानों के लिए खोला योजना का पिटारा, अब खेत में कुआ खोदने के लिए मिलेंगी 4 लाख रुपये सबसिडी, ऑनलाईन आवेदन शुरू

कैसे लगाएं पौधे

पालीथिन थैले में 8-10 इंच उचाई के ऊतक संवर्धन द्वारा तैयार पौधे रोपण हेतु उपयुक्त होते हैं. पालीथिन के पैकेटों को तेज चाकू या ब्लेड से काटकर अलग कर देते हैं, तथा पौधों को निकाल लेते है, ध्यान यह देना चाहिए कि मिट्टी के पिण्डी न फुटने पाये.

पहले से भरे गये गढ्ढो के बीचो-बीच मिट्टी के पिन्डी के बराबर छोटा सा गढ्ढा बनाकर पौधे को सीधा रख देना चाहिए. पौधे की जड़ों को बिना हानि पहुचाएं पिन्डी के चारों ओर मिट्टी भरकर अच्छी प्रकार दबा देना चाहिए ताकि सिंचाई के समय मिट्टी में गढ्ढे न पड़ें. बहुत अधिक गहराई में रोपण कार्य नहीं करना चाहिए. केवल पौधे की पिन्डी तक ही मिट्टी भरना चाहिए.

इस प्रकार रोपण के बाद 12-13 माह में ही केला की पहली फसल प्राप्त हो जाती है. ऊतक संवर्धन विधि से तैयार पौधों से औसत उपज 30-35 किलोग्राम प्रति पौधा तक मिलती है.

पहली फसल लेने के बाद दूसरी खुटी फसल (रैटून) में गहर 8-10 माह के भीतर पुनः आ जाती है. इस प्रकार 24-25 माह में केले की दो फसलें ली जा सकती हैं जबकि प्रकन्दों से तैयार पौधों से सम्भव नहीं है.

ऐसे पौधों के रोपण से समय तथा धन की बचत होती है. परिणाम स्वरूप, पूँजी की वसूली शीघ्र होती है. यानी लाखों रुपये की सालाना किसानों को कमाई होती है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *