Khetkhajana
45 दिनों की फूट ककड़ी से ग्रामीण किसानों की हो रही लाखों की कमाई, सूखे क्षेत्रों में ऐसे करें खेती
फूट ककड़ी की खेती कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली खेती है सिर्फ 45 दिनों की खेती किसान को लाखों का फायदा दे सकती हैं।कच्चे में इसका स्वाद खीरा व ककड़ी की तरह होता है मगर पकने पर यह खरबूजे की तरह जायका देता है। अमूमन बरसात में सावन के बाद खेतों में इसका जायका अब ग्रामीण अंचलों में ही सिमट कर रह गया है। यह कई तरह के खनिजों की शरीर में आपूर्ति करता है। पानी भी इसमें भरपूर होता है लिहाजा सेहत के लिए इसका कोई जोड़ नहीं।
हालांकि, यह सब्ज़ी अन्य सब्ज़ियों की तरह लोकप्रिय नहीं है, मगर केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ( ICAR-Central Institute for Arid Horticulture, Bikaner) द्वारा इसकी कुछ उन्नत किस्मों और नई तकनीक के विकास से पिछले कुछ साल में इसकी खेती में बढ़ोतरी हुई है। कई किसान इससे मुनाफ़ा कमाने में सफल रहे हैं। फुट ककड़ी की खेती अतिरिक्त आमदनी कमाने का अच्छा विकल्प है।
फूट ककड़ी गर्म और शुष्क मौसम की फसल है। इसलिए राजस्थान का वातावरण इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। यह फसल 45-48 डिग्री तापमान में भी उग जाती है। बीजों के अंकुरण के लिए 20-22 डिग्री सेल्सियस और पौधों व फलों के विकास के लिए 32-38 डिग्री सेल्सियस तापमान की ज़रूरत होती है। इसकी खती गर्मियों में अच्छी होती है। इसकी खेती के लिए रेतीली व बलुई-दोमट मिट्टी उपयुक्त हैं और खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। 6.5-8.5 तक पी.एच. मान वाली कम उपचाऊ मिट्टी में भी फूट ककड़ी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
मॉनसून से पहले ही जून में खेत की गहरी जुताई करके इसे तैयार कर लेना चाहिए। जून के अंतिम हफ़्ते में भेड़-बकरी या गोबर की खाद मिलाकर एक बार फिर से जुताई करें। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को बुवाई के लिए तैयार करें। गर्मियों में बुवाई के लिए खेत को जनवरी-फरवरी में दो बार कल्टीवेटर से जुताई करके पाटा लगाएं।
खेतों की सिंचाई, नाली या बूंद-बूंद सिंचाई विधि से की जाती है। वैज्ञानिक तरीके से फूट ककड़ी की खेती में नाइट्रोजन आधी मात्रा, फॉस्फोरस, पोटाश व अन्य रसायन व खाद का इस्तेमाल खेत में नालिया व क्यारियां बनाने से पहले किया जाता है। नाइट्रोजन की बाकी बची आधी मात्रा को 50 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 3 हिस्सों में बांटकर बुवाई के 18-21, 30-35 और 45-50 दिन बाद सिंचाई के साथ नालियों में छिड़का जाता है।
एएचएस 10- इस किस्म के फलों का छिलका चिकना होता है और फल हल्के पीले व धब्बेदार होते हैं। बुवाई के 65-70 दिनों बाद फल तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 215-230 क्विंटल है।
एएचएस 82- इस किस्म की फुट ककड़ी का आकार बड़ा, फलों का छिलका चिकना व फल पीले व केसरिया रंग के होते हैं। यह बुवाई के 66-72 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। प्रति हेक्टेयर उपज क्षमता 232-248 क्विंटल है।
पौधों में लाल व ऐपीलेकना भंग, सफेद व फल मक्खी और रस चूसने वाले कीटों के प्रकोप की आशंका बनी रहती है। इनसे बचाव के लिए एक किलोग्राम कीटनाशी या नीम पत्ती चूर्ण को 10 किलोग्राम राख के मिश्रण को टाट की थैली में भरकर सुबह के समय पौधों पर भुरकाव करें। फसल में समेकित रोग-कीट नियंत्रण के लिए बुआई के बाद 18-25, 30-35 व 45-50 दिनों के क्रम में इमिडाक्लोरोपिड, मिथाइल डिमेटोन एवं डाइमिथोऐट दवा का छिड़काव करना फ़ायदेमंद रहता है।
फूट ककड़ी के पके फलों को ज़्यादा दिनों तक ताजा सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। इसलिए तुड़ाई के बाद लंबे समय तक उपयोग में लाने के लिए इनकी प्रोसेसिंग किसान कर सकते हैं। फूट ककड़ी के फलों के गूदे से कैच-अप, जैम एवं निर्जलीकरण (सुखाना) से खेलड़ा तथा बीजों से गिरी तैयार की जा सकती है। इस तरह से घरेलू स्तर पर मूल्य संवर्धन से स्वरोजगार और लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
कम संसाधनों में भी फूट ककड़ी की खेती की जा सकती है। 2014 से 2018 तक फूट ककड़ी के उत्पादन और मार्केट पर किए गए अध्ययनों से साबित हुआ है कि कम बारिश या सिंचाई के बावजूद प्रति हेक्टेयर किसानों को 165-225 क्विंटल फल प्राप्त होता है। इसे बेचकर वह 65 हज़ार से लेकर एक लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।
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