सोलर प्लांट बना लोगों के लिए परेशानी का सबब, सोलर प्लांट से 5 डिग्री पारा बढ़ने से 100 जलस्रोत सूखे

सोलर प्लांट बना लोगों के लिए परेशानी का सबब, सोलर प्लांट से 5 डिग्री पारा बढ़ने से 100 जलस्रोत सूखे
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सोलर प्लांट बना लोगों के लिए परेशानी का सबब, सोलर प्लांट से 5 डिग्री पारा बढ़ने से 100 जलस्रोत सूखे

खेत खजाना: बीकानेर राजस्थान के रेगिस्तानी जिलों बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर में सोलर पैनल की वजह से तापमान 3 से 5 डिग्री तक बढ़ गया है। ग्रीन एनर्जी का दावा कर पश्चिमी राजस्थान में बड़े-बड़े प्लांट लग रहे हैं। बीकानेर में छोटे-बड़े 67 प्लांट हैं, जिनसे करीब 4051 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। इसके अलावा 12 प्लांट लगने की प्रक्रिया चल रही है। इन सोलर प्लांट को लगाने के लिए खेजड़ी, रोहिडा, केर, बेर और कुमटिया जैसे लाखों पेड़ काट दिए गए हैं। इससे तापमान बढ़ा। साथ ही तितलियां और मधुमक्खी जैसे कीट-पतंगे भी इलाके से गायब हो गए। ग्रीन एनर्जी के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन का दूसरा पहलू भी है। इन प्लांट को साफ और ठंडा रखने के लिए हर हफ्ते 4 करोड़ लीटर पानी ( 3 लाख लोगों की रोज की जरूरत जितना ) खर्च हो रहा है।

नतीजा यह हुआ कि कई इलाकों के प्राकृतिक जलस्रोत सूख गए हैं। बीकानेर की गजनेर तहसील का दौरा किया तो यहां छोटे-बड़े 12 प्लांट मिले। इनमें प्लेटों की नियमित सफाई के लिए ठेकेदार तालाबों और डिग्गियों का पानी सप्लाई करते हैं। इससे यहां 110 में से 100 जलस्रोत सूख गए हैं या उनमें बहुत कम पानी बचा है।

जहां प्लांट लगे मधुमक्खियां और तितली गायब हो गईं

जिन इलाकों में बड़ी संख्या में सोलर प्लांट लगे वहां मधुमक्खी के छत्ते गायब हो गए। तितलियां दिखाई नहीं दे रही हैं। पक्षियों की संख्या भी कम हो गई है। कीड़े-मकोड़े मर गए। पेड़ों में फ्रूटिंग- फ्लॉवरिंग भी रुक गई है। एमजीएस विवि के प्रोफेसर अनिल कुमार छंगाणी कहते हैं- ग्रीन एनर्जी के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है।

ऐसा ही होता रहा तो दो दशक बाद का दृश्य डरावना होगा

■ सोलर प्लांट्स के कारण राजस्थान का तापमान बढ़ रहा है। बिट्स रांची के वैज्ञानिकों ने ये सिद्ध किया है। सोलर कचरे के निस्तारण की कोई पॉलिसी नहीं है। खेत मालिक रुपयों के लालच में पेड़ कटवाने की सहमति हैं। ये मैं नहीं कह रहा, बल्कि सैटेलाइट इमेज में एक-एक सबूत हैं। ऐसा ही रहा तो दो दशक बाद का दृश्य डरावना होगा।

- प्रो. अनिल कुमार छंगाणी, विभागाध्यक्ष, पर्यावरण विभाग, एमजीएस विवि

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