खेतों की सिंचाई के समय अगर किसान भाइयों को काट ले सांप या हो जाए कोई इंफेक्शन, तो यह बेहद खास चीज आएगी बड़े काम

खेतों की सिंचाई के समय अगर किसान भाइयों को काट ले सांप या हो जाए कोई इंफेक्शन, तो यह बेहद खास चीज आएगी बड़े काम
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Khetkhajana

खेतों की सिंचाई के समय अगर किसान भाइयों को काट ले सांप या हो जाए कोई इंफेक्शन, तो यह बेहद खास चीज आएगी बड़े काम

खेत में सिंचाई करते समय या अन्य कृषि कार्य करते हुए किसानों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है सिर्फ दिन ही नहीं रात में भी किसान भाइयों को खेतों की सिंचाई करनी पड़ती है इस दौरान उन्हें कृषि उपकरणों से चोट लगने या खेत में किसी जानवर के काटने या इंफेक्शन होने का डर रहता है कहीं बार तो किसानों को किसी इंफेक्शन या जानवर के काटने से काफी दर्द होता है और सांप, बिच्छू या अन्य किसी जानवर के काटने से किसान की मौत भी हो जाती है लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि किसान की इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए 3 युवाओं ने बना दिया है ये सस्ते और खास जूते जो स्पेशल किसानों के लिए ही हैं।

खेतों में काम के दौरान छोटी- बड़ी चोट या किसी जानवर के काटने को किसान अनदेखा कर देते हैं लेकिन कभी कबार यह चोट गंभीर रूप ले लेती है कई किसानों को ऐसी समस्याओं का सामना करते देखा गया है लेकिन उनके पास कोई समाधान नहीं है क्योंकि सिंचाई करते वक्त ऐसे जूते डालना असंभव हो जाता है और किसान चप्पल पहन कर ही ज्यादातर कृषि कार्य करते हैं लेकिन अब नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन के तीन पूर्व छात्रों ने किसानों के लिए ऐसे स्पेशल जूते तैयार किए हैं जो वाटरप्रूफ होने के साथ-साथ किसान को खेती कार्य के दौरान लगने वाली चोटों से तो बचाएगा ही साथ ही सदाबहार होने के कारण किसान इसे सर्दी या गर्मी या किसी भी मौसम में पहन सकता है। जिससे उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी।

दरअसल, दक्खनी भेड़ की ऊन से बने शॉल को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन, अहमदाबाद के तीन पूर्व छात्रों ने किसानों के लिए वॉटरप्रूफ सदाबहार जूते में बदल दिया है. इस जूते को किसी भी मौसम में पहना जा सकता है. यह हल्का होने के साथ टिकाऊ भी है.

एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में संतोष कोचरलाकोटा ने बताया कि उन्होंने एक कार डिजाइनर के रूप में अपना करियर शुरू किया था, वो फेरारी और लेम्बोर्गिनी जैसी गाड़ियों के लिए काम करना चाहते थे, लेकिन इससे पहले ही उनके सामने किसानों की एक ऐसी समस्या आई जिससे वो हर रोज जूझते हैं.

उन्होंने आगे बताया, “किसानों की समस्याओं को समझने के लिए हमने ग्रामीण महाराष्ट्र में अलग-अलग जगहों पर 1.5 साल बिताए. जब हम किसानों से मिले, तो नंगे पैर रहने की वजह से पैर फटना, फंगल इन्फेक्शन और सांप का काटना आमबात थी. जिसके बाद हमने जूतों की समस्या को शॉर्टलिस्ट किया और उस पर काम करना शुरू कर दिया और इसका परिणाम यह वॉटरप्रूफ जूता है.”

संतोष कोचरलाकोटा की इस पहल में एक यूरोपीय कंपनी के लिए इलेक्ट्रिक कार डिजाइन पर काम करने वाले नकुल लठकर और भारतीय रेलवे के लिए सीटें डिजाइन करने वाले विद्याधर भंडारे ने भी अहम योगदान दिया है. विद्याधर भंडारे के मुताबिक, दक्खनी ऊन की पहचान करने से पहले टीम ने 40 प्रोटोटाइप का परीक्षण किया, जिनमें से कुछ जूट, केला फाइबर, कपास, स्क्रूपाइन फाइबर और यहां तक कि जलकुंभी फाइबर से बने थे.

वॉटरप्रूफ जूते की कीमत

जूते 'यार' ब्रांड नाम के तहत बेचे जा रहे हैं. शहरी क्षेत्रों में बेचे जाने वाले रंगीन मॉडल के जूतों की कीमत 2,500 रुपये है. वहीं किसान बिना रंग के काला जूता महज 900 रुपये में खरीद सकते हैं.

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