Barley Cultivation: किसान भाई सही समय पर जौ की करेंगे बुवाई तो होगी बंपर कमाई, कम लागत में अच्छी पैदावार के लिये लगायें ये किस्में
सिंचाई एवं उर्वरक के सीमित साधन एवं असिंचित दशा में जौ की खेती गेहूँ की अपेक्षा अधिक लाभप्रद है। सिंचित, असिंचित, विलम्ब से तथा ऊसरीली भूमि में जौ की खेती से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु निम्न बिन्दुओं का ध्यान रखना होगा
खेत की तैयारी
देशी हल या डिस्क हैरो से 2-3 जुताइयां करके खेत तैयार कर लेना चाहिए।
बोने का समय | |
असिंचित | सभी क्षेत्रों में 20 अक्टूबर से 10 नवम्बर तक। |
सिंचित समय | 25 नवम्बर तक |
विलम्ब से | दिसम्बर के दूसरे पखवारे तक। |
जौ की उन्नतिशील प्रजातियाँ
छिल्कायुक्त छः धारीय प्रजातियाँ मैदानी क्षेत्र
कं.सं. | प्रजातियाँ | अधिसूचना की तिथि | उत्पादकता कु०/हेक्टेयर | पकने की अवधि दिनो में | विशेष विवरण |
1 | ज्योति (क.572/10) | 08.10.1974 | 25-28 | 120-125 (विलम्ब से) | सिंचित दशा विलम्ब से बुआई हेतु कण्डुवा एवं स्ट्राइप अवरोधी। मैदानी क्षेत्र हेतु उपयुक्त। |
2 | आजाद (के-125) | 14.01.1982 | 28-32 | 110-115 | असिंचित दशा तथा ऊसरीली भूमि, चारा तथा दाना के लिये उपयुक्त कण्डुआ एवं स्ट्राइप अवरोधी, मैदानी क्षेत्र हेतु। |
3 | के-141 | 29.05.1982 | 30-32 | 120-125 | असिंचित दशा चारा एवं दाना के लिये उपयुक्त नीलाभ कण्डुआ एवं स्ट्राइप अवरोधी। मैदानी क्षेत्र हेतु। |
4 | हरितमा (के-560) | 15.05.1998 | 30-35 | 110-115 | असिंचित दशा के लिये उपयुक्त समस्त रोगों के लिए अवरोधी समस्त उत्तर प्रदेश हेतु। |
5 | प्रीती (के-409) | 02.02.2001 | 40-42 | 105-112 | सिंचित दशा हेतु जौ की प्रमुख बीमारियों के प्रति अवरोधी। समस्त उत्तर प्रदेश हेतु। |
6 | जागृति (के-287) | - | 42-45 | 125-130 | सिंचित दशा में कण्डुआ एवं स्ट्राइप अवरोधी। उ० प्र० का मैदानी क्षेत्र हेतु। |
7 | एन.डी.बी. 1445 (नरेन्द्र जौ-7) | 13.01.2013 | 30-35 | 125-128 | सम्पूर्ण उ0प्र0 एवं ऊसर भूमि के लिए |
8 | लखन (के.226) | 24.07.1985 | 30-32 | 125-130 | असिंचित दशा के लिए उपयुक्त नीलाभ कण्डुआ एवं स्ट्राइप अवरोधी। मैदानी क्षेत्र हेतु। |
9 | मंजुला (के.329) | 01.05.1997 | 28-30 | 110-115 | पछेती बुआई हेतु नीलाभ कण्डुआ अवरोधी।उ० प्र० का समस्त मैदानी क्षेत्र हेतु। |
10 | आर.एस.-6 | 20.02.1970 | 25-30 सिंचित | 120-125 | सिंचित, असिंचित तथा विलम्ब से बुआई हेतु कण्डुआ |
- | 20-22 असिंचित | 110-115 | तथा स्ट्राइप आंशिक अवरोधी। बुन्देलखण्ड क्षेत्र हेतु। | ||
11 | नरेन्द्र जौ-1 92 (एन.डी.बी.-209) | 92 (ई.) 2.2.01 | 25-30 सिंचित | 110-115 | समस्याग्रस्त ऊसर भामि के लिए उपयुक्त जौ की प्रमुख बीमारियों के लिए अवरोधी। |
12 | नरेन्द्र जौ-2 (एन.डी.बी.-940) | 92 (ई.) 2.2.01 | 40-45 सिंचित समय से | 110-115 | सिंचित समय से बुआई के हेतु जौ की प्रमुख बीमारियों के लिए अवरोधी। |
13 | नरेन्द्र जौ-3 (एन.डी.बी.-1020) | 937 (ई) 4.9.02 | 25-30 | 110-115 | समस्याग्रस्त ऊसर भूमि के लिये उपयुक्त कण्डुआ के लिये अवरोधी। |
14 | आर.डी.-2552 | 03.04.2000 | 30-40 | 120-125 | लवणीय भूमियों के लिये उपयुक्त |
15 | के. 603 | 02.02.2001 | 30-35 | 115-122 | असिंचित दशा के लिये उपयुक्त समस्त रोगों के लिये अवरोधी। |
16 | एन.डी.बी.-1173 | एस.ओ. 12 (ई.) 4.2.05 | 35-45 | 115-120 | सिंचित, असिंचित, समस्याग्रस्त एवं ऊसर क्षेत्रों हेतु उपयुक्त। |
छिंलका रहित प्रजातियॉ
मैदानी क्षेत्र | |||||
1 | (के-1149) गीतांजली | 01.05.1997 | 25-27 | 95-100 | असिंचित दशा हेतु, गेरूई, कण्डुआ, स्टाइप, नेट ब्लाच अवरोधी समस्त उ० प्र० हेतु |
2 | नरेन्द्र जौ 5 (एन.डी.बी. 943) (उपासना) | 17-18/2008 एस.ओ. (चतुर्थ) 20.1.2009 | 35-45 | 115-100 | सिंचित समय से बुआई हेतु, पर्णीय झुलसा धारीदार रोग, गेरूई, नेट ब्लाच अवरोधी एवं समस्याग्रस्त मृदा में संतोषजनक एवं अच्छी उपज। |
माल्ट हेतु प्रजातियाँ
कं.सं. | प्रजातियाँ | अधिसूचना की तिथि | उत्पादकता कु०/हेक्टेयर | पकने की अवधि दिनों में | विशेष विवरण |
माल्ट हेतु प्रजातियाँ | |||||
1 | प्रगति (के. 508)- छः धारीय | 15.05.1998 | 35-40 | 105-110 | स्ट्राइप, कण्डुआ, पीली गेरूई अवरोधी। |
2 | ऋतम्भरा(के.551) (छः धारीय) | 15.05.1998 | 40-45 | 120-125 | सिंचित दशा में माल्ट व बीयर के लिए। उपयुक्त गेरूई कण्डुआ एवं हेलमेन्थीस्पोरियम बीमारियों के लिए अवरोधी। समस्त उ०प्र० हेतु। |
3 | डी०डब्लू०आर-28 (दो धारीय) | - | 40-45 | 130-135 | सिंचित क्षेत्रों हेतु। |
4 | डी०एल०-88 (छः धारीय) | 15.05.1998 | 40-42 | 120-125 | सिंचित पछैती बुआई हेतु। समस्त उ०प्र० हेतु। |
5 | रेखा (बी०सी०यू०73) (दो धारीय) | 01.05.1997 | 40-42 | 120-125 | सिंचित पूर्ण रोग अवरोधी। समस्त उ०प्र० हेतु। |
बीज की मात्रा
असिंचित | 100 किग्रा० प्रति हे0। |
सिंचित | 100 किग्रा० प्रति हे०। |
पछैती बुवाई | 125 किग्रा०/हे०। |
बुवाई की विधि
बीज हल के पीछे कूंड़ों में 23 सेमी० की दूरी पर 5-6 सेमी० गहरा बोयें। असिंचित दशा में बुआई 6-8 सेमी० गहराई में करें जिससे जमाव के लिए पर्याप्त नमी मिल सके।
उर्वरक
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना ही उचित है।
अ- असिंचित
प्रति हेक्टेयर 40 किग्रा० नत्रजन, 20 किग्रा० फास्फेट तथा 20 किग्रा० पोटाश को बुआई के समय कूड़ों में बीज के नीचे डालें। चोगें अथवा नाई का प्रयोग अधिक लाभप्रद है।
ब- सिंचित समय से बुआई की दशा में
प्रति हेक्टेयर 30 किग्रा० नत्रजन तथा 30 किग्रा० फास्फेट व 20 किग्रा० पोटाश बुआई के समय कूंड़ों में बीज के नीचे डाले तथा बाद में 30 किलोग्राम नत्रजन पहली सिंचाई पर टापड्रेसिंग करें। हल्की भूमि में 20-30 किग्रा०/हे० की दर से गंधक का प्रयोग करना चाहिए। अच्छी उपज के लिए 40 कुन्तल प्रति हे० की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। माल्ट प्रजातियों हेतु 25 प्रतिशत अतिरिक्त नत्रजन का प्रयोग करें।
स- ऊसर तथा विलम्ब से बुआई की दशा में
प्रति हे० 30 किग्रा० नत्रजन तथा 20 किग्रा० फास्फेट बुआई के समय कूंड़ों में बीज के नीचे डाले और बाद में 30 किग्रा० नत्रजन टापड्रेसिंग के रूप में पहली सिंचाई के बाद प्रयोग करें। ऊसर भूमि में 20-25 किग्रा० प्रति हे० जिंक सल्फेट का प्रयोग करें।
सिंचाई
दो सिंचाई: पहली कल्ले फूटते समय बुआई के 30-35 दिनों बाद व दूसरी दुग्धावस्था में करें। यदि एक ही सिंचाई उपलब्ध हो तो कल्ले फूटते समय करें। माल्ट हेतु जौ की खेती में एक अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। ऊसर भूमि में तीन सिंचाई पहले कल्ले निकलते समय दूसरी गाँठ बनते समय तथा तीसरी दाना पड़ते समय करें।
फसल सुरक्षा
(क) प्रमुख कीट
दीमक | गेहूँ की तरह |
गुजिया वीविल | गेहूँ की तरह |
माहूँ | गेहूँ की तरह अथवा थायोमैथोजाम 30 प्रतिशत एफ.एस. 3.50 मिली० |
नियंत्रण के उपाय
- बुआई से पूर्व दीमक के नियंत्रण हेतु क्लोरीपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. की 3 मिली अथवा थायोमिथोजाम 30 प्रतिशत एफ.एस. 3 मिली० प्रति किग्रा० बीज के दर से बीज को शोधित करना चाहिए।
- ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की 2.5 किग्रा० प्रति हे० 60-75 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है।
- खड़ी फसल में दीमक/गुजिया के नियंत्रण हेतु क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. 2.5 ली० प्रति हे० की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।
- माहूँ कीट के नियंत्रण हेतु डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. अथवा मिथाइल-ओ-डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. के 1.0 ली० प्रति हेक्टेयर अथवा थायोमैटान 25 प्रतिशत ई.सी. 1.0 लीटर लगभग 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) 0.15 प्रतिशत ई.सी. 2.5 ली० प्रति हेक्टेयर की दर से भी प्रयोग किया जा सकता है।
(ख) प्रमुख रोग
- आवृत कण्डुआ: इस रोग में बालियों के दानों के स्थान पर काला चूर्ण बन जाता है जो मजबूत झिल्ली द्वारा ढका रहता है और मड़ाई के समय फूट कर स्वस्थ बीजों से चिपक जाते है।
- पत्ती का धारीदार रोग: इस रोग में पत्ती की नसों में पीली धारियाँ बन जाती है। जो बाद में गहरें भूरे रंग में बदल जाती है। जिस पर फफूँदी के असंख्य बीजाणु बनते है।
- पत्ती का धब्बेदार रोग: पत्तियों पर अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे बनते है जो बाद में पूरी पत्ती पर फैल जाते है।
- अनावृत कण्डुआ: गेहूँ की तरह
- गेरूई रोग: गेहूँ की तरह
नियंत्रण के उपाय
1. बीज उपचार
- आवृत कण्डुआ, अनावृत कण्डुआ पती का धारीदार रोग एवं पत्ती का धब्बेदार रोगों के नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.5 ग्राम अथवा कार्बाक्सिन 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.5 ग्राम प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुआई करना चाहिए।
- अनावृत कण्डुआ एवं अन्य बीज जनित रोगों के साथ-साथ प्रारम्भिक भूमि जनित रोगों के नियंत्रण हेतु कार्बाक्सिन 37.5 प्रतिशत + थीरम 37.5 प्रतिशत डी.एस./डब्लू एस. की 3.0 ग्राम प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुआई करना चाहिए।
2. भूमि उपचार
- भूमि जनित एवं बीज जनित रोगों के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) ट्राइकोडरमा बिरडी 1 प्रतिशत डब्लू.पी.अथवा ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.5 किग्रा० प्रति हे० 60-75 किग्रा० सड़ी हुए गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से अनावृत्त कण्डुआ, आवतृत कण्डुआ आदि रोगों के प्रबन्धन में सहायक होता है।
3. पर्णीय उपचार
- गेरूई एवं पत्ती धब्बा रोग एवं पत्ती धारी रोग के नियंत्रण हेतु जिरम 80 प्रतिशत डब्लू पी. की 2.0 किग्रा० अथवा मैंकोजेब 75 डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा० अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा० प्रति हे० लगभग 750 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
- गेरूई के नियंत्रण हेतु प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. की 500 मिली० प्रति हे० पानी लगभग 750 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(ग) प्रमुख खरपतवार
· सकरी पत्ती - गेहुंसा एवं जंगली जई।
· चौड़ी पत्ती - बथुआ, सेन्जी, कृष्णनील, हिरनखुरी, चटरी-मटरी, अकरा, जंगली-गाजर, गजरी, प्याजी, खरतुआ, सत्यानाशी आदि।
नियंत्रण के उपाय
गेहुंसा एवं जंगली जई के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 500-600 ली० पानी में घोलकर प्रति हे० बुआई के 20-25 दिन के बाद फ्लैटफैन नाजिल से छिड़काव करना चाहिए। सल्फो सल्फ्यूरान हेतु पानी की मात्रा 300 लीटर होनी चाहिए।
- आइसोप्रोट्यूरान 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 1.25 किग्रा० प्रति हेक्टेयर।
- सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 33 ग्राम (2.5 यूनिट) प्रति हेक्टेयर।
- फिनोक्साप्राप-पी-इथाइल 10 प्रतिशत ई.सी. की 1.0 ली० प्रति हेक्टेयर।
- क्लोडिनाफाप प्रोपैरजिल 15 प्रतिशत डब्लू.पी. की 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
चौड़ी पत्ती के खरपतवार बथुआ, सेन्जी, कृष्णनील, हिरनखुरी, चटरी-मटरी, अकरा-अकरी, जंगली-गाजर, गजरी, प्याजी, खरतुआ, सत्यानाशी आदि के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 500-600ली० पानी में घोलकर प्रति हे० बुआई के 25-30 दिन के बाद फ्लैटफैन नाजिल से छिड़काव करना चाहिए।
- 2,4 डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत टेक्निकल की 625 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
- 2,4 डी डाई मिथाइल एमाइन साल्ट 58 प्रतिशत डब्लू.एस.सी. की 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर।
- कारफेन्ट्राजॅान इथाइल 40 प्रतिशत डी.एफ. की 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
- मेट सल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्लू.पी. की 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
सकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के एक साथ नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत को लगभग 500-600 ली० पानी में घोलकर प्रति हे० फ्लैटफैन नाजिल से छिड़काव करना चाहिए।
- पेण्डीमेथलीन 30 प्रतिशत ई.सी. की 3.30 ली० प्रति हेक्टेयर बुआई के 3 दिन के अन्दर।
- सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 33 ग्राम (2.5 यूनिट) प्रति हेक्टेयर बुआई के 20-25 दिन के बाद।
- मैट्रीब्यूजिन 70 प्रतिशत डब्लू.पी. की 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई के 20-25 दिन के बाद।
(घ) प्रमुख चूहे
खेत का चूहा (फील्ड रैट), मुलायम बालों वाला खेत का चूहा (साफ्ट फर्ड फील्ड रैट) एवं खेत का चूहा (फील्ड माउस)।
नियंत्रण के उपाय
गेहूँ की तरह करें।
कटाई तथा भण्डारण
कटाई का कार्य सुबह या शाम के समय करें । बालियों के पक जाने पर फसल को तुरन्त काट ले और मड़ाई करके भण्डारण करें। भण्डारण विधि का वर्णन गेहूँ की खेती के अन्तर्गत किया जा चुका है।
मुख्य बिन्दु
· परिस्थिति अनुसार उपयुक्त प्रजातियों का चयन कर शुद्ध एवं प्रमाणित बीज बोये।
· मृदा परीक्षण के आधार पर संस्तुति अनुसार उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करें।
· खरपतवारों के नियंत्रण हेतु संस्तुत रसायनों का समय से प्रयोग किया जायें।
· रोग एवं कीड़ों की रोकथाम हेतु गेहूँ में संस्तुति अनुसार रसायनों का प्रयोग किया जाय।
· उपलब्धता अनुसार सिंचाई कल्ले फूटते समय एवं दुग्धावस्था में करें।