सरसों की फसल पर आई चेंपा कीट की आफत, समाधान के लिए उठायें ये कदम

चेंपा कीट की बढ़ती संख्या के साथ, जनवरी-फरवरी महीने में उत्तर भारत में सरसों के किसानों को नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

सरसों की फसल पर आई चेंपा कीट की आफत, समाधान के लिए उठायें ये कदम
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चेंपा कीट की बढ़ती संख्या के साथ, जनवरी-फरवरी महीने में उत्तर भारत में सरसों के किसानों को नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इस समय में चेंपा कीटों के प्रकोप का खतरा बढ़ जाता है, जो सरसों की फसलों को प्रभावित कर सकता है और किसान को फसलों के नुकसान का सामना करना पड़ता है। चेंपा कीट की पहचान हल्के हरे-पीले रंग की होती है, और यह पौधों के विभिन्न भागों में रहकर रस चूसता है, जिससे पौधों की ग्रोथ रुक जाती है।

कृषि विभाग ने इस चुनौती के समय किसानों को अच्छे से सलाह दी है और उन्हें चेंपा कीट के प्रबंधन के लिए उपायों का पालन करने का सुझाव दिया है। विशेषकर, चेंपा कीट के प्रकोप की संभावना ठंडे मौसम के दौरान बढ़ती है, जब तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है और ह्यूमिडिटी (आर्द्रता) अधिक होती है। इसलिए, कृषि विभाग ने किसानों को चेंपा कीट के खिलाफ आवश्यक कदम उठाने की सलाह दी है।

इस मुश्किल समय में किसानों को बचाने के लिए, कृषि विभाग ने सलाह दी है कि चेंपा कीट के खिलाफ सुरक्षा उपायों का अच्छे से पालन किया जाए। इसके लिए, मेलाथियॉन 5% या डायमेथोएट 30 ई.सी. जैसे कीटनाशकों का सही समय पर उपयोग करने का सुझाव दिया गया है। इन दवाओं को प्रति हेक्टेयर की निर्दिष्ट मात्रा में पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

कृषि विभाग के अधिकारियों और पर्यवेक्षकों ने भी किसानों को सीधे रूप से गाइड किया है कि इन दवाओं की सही मात्रा और उपयोग के लिए सही समय कैसे निर्धारित करें। यह उपाय किसानों को चेंपा कीट के प्रकोप से अपनी फसलों को सुरक्षित रखने में मदद करेगा और उन्हें लाभकारी उत्पादन हासिल करने में सहायक होगा।

इसके अलावा, कृषि विभाग ने किसानों को बताया है कि उन्हें अपनी फसलों की स्वस्थता को नियमित रूप से मॉनिटर करना चाहिए और यदि किसी प्रकार की अनुसंधान की आवश्यकता हो, तो वे तुरंत कृषि विभाग से सहायता प्राप्त करें।

इस परिस्थिति में, कृषि विभाग ने जनता को इस समस्या के सामना करने के लिए सचेत किया है और सही दिशा में कदम उठाने का सुझाव दिया है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि किसान नियमित अंधा-धुंध किसानी करें और उन्हें आवश्यक उपायों का पालन करने के लिए आगाह रहें, ताकि उनकी मेहनत और परिश्रम से कमाई हुई फसलें सुरक्षित रहें और वे अच्छे उत्पादन की दिशा में बढ़ सकें।

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