किसान भाई ध्यान दे! शीतलहर से फसलों को होगा भारी नुकसान, बचाव के अपनाए ये आसान तरीका

किसान भाई ध्यान दे! शीतलहर से फसलों को होगा भारी नुकसान, बचाव के अपनाए ये आसान तरीका
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Farming Tips: सर्दी के मौसम में शीतलहर और पाला से सभी फसलों को कुछ नुकसान होता है। टमाटर, आलू, मिर्च, बैंगन, पपीता और अन्य सब्जियों के पौधों तथा मटर, चना, धनिया, सौंफ जैसी फसलों में 80 से 90% तक की नुकसान हो सकती है। इसलिए, किसानों को अपनी फसलों को सर्दी से बचाने के लिए उपाय अपनाने जरूरी हैं, ताकि उनकी मेहनत का नुकसान न हो। सरकार ने इसे ध्यान में रखते हुए किसानों के लिए सलाह जारी की है।

शीतलहर और पाला से नुकसान

शीतलहर और पाले से गेहूं और जौ की फसल में 10 से 20 फीसदी तक नुकसान हो सकता है। पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां और फूल झुलसे हुए दिखाई देते हैं और बाद में झड़ जाते हैं। अक्सर फलों में सिकुड़ावट होती है, जिससे वे न तो सही ढंग से विकसित होते हैं और न ही उनमें दाने बनते हैं। यह फसलों की वजन में कमी और उनके स्वाद में भी प्रभाव डाल सकता है। रबी फसलों में फूलने, फलने, और उनके विकास के समय पाले लगने की संभावना सबसे अधिक रहती है।

इस समय, किसानों को चाहिए कि वे फसलों की सुरक्षा के उपायों पर ध्यान दें। पाले पड़ने के लक्षण सबसे पहले वनस्पतियों पर दिखाई देते हैं, जैसे कि आक आदि। सर्दियों में उस समय ठंडी हवा चलना चाहिए जब हवा का तापमान नीचे गिरकर जमाव बिंदु से नीचे जाता है।

दोपहर के बाद, हवा का चलना बंद हो जाए और आसमान साफ रहे, या अगर रात के प्रारंभ में ही हवा रूक जाए, तो पाले पड़ने की संभावना होती है। रात के तीसरे और चौथे प्रहर में भी पाला पड़ने की संभावना रहती है। अगर शीतलहर हवा के रूप में चलती रहती है तो फिर भले ही तापमान कितना भी नीचे चला जाए, फिर भी कोई नुकसान नहीं होता। लेकिन, अगर हवा रूक जाए और आसमान साफ हो, तो फिर फसलों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

शीतलहर और पाला से फसल की सुरक्षा के उपाय

सरकारी एडवाइजरी के मुताबिक, जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो उस रात 12 से 2 बजे के आसपास खेत के उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास मेड़ों पर रात्रि में कूड़ा कचरा या अन्य घास फूल जला कर धुआं करना चाहिए ताकि खेत में धुआं आ जाये और वातावरण में गर्मी आ जाए.

सुविधा के लिए मेड़ पर 10 से 20 फुट के अन्तर पर कूड़े करकट पर ढेर लगाकर धुआं करें. धुआं करने के लिए अन्य पदार्थो के साथ क्रूड आयॅल का भी प्रयोग कर सकते हैं. इस विधि से 4 डिग्री सेल्शियस तापक्रम आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

पौधशालाओं कें पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों, नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलों को टाट, पॉलीथिन अथवा भूसे से ढक दें. वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर पश्चिम की तरफ बांधें.

जब पाला पडने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए. नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है और भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है. इस प्रकार पर्याप्त नमी होने पर शीतलहर व पाले से नुकसान की सम्भावना कम रहती है. वैज्ञानिकों के अनुसार सर्दी में फसल में सिंचाई करने से 0.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ जाता है.

जिन दिनों पाला पडने की संभावना हों उन दिनों फसलों पर गंधक के तेजाब के 0.1% घोल का छिड़काव करना चाहिए. इसके लिए एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टयर क्षेत्र में प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़कें. ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगें. छिड़काव का असर दो हफ्ते तक रहता है. अगर इस अवधि के बाद भी शीतलहर व पाले की संभावना बनी रहे तो गंधक के तेजाब को 15 से 15 दिन के अंतर से दोहराते रहें.

सरसों, गेहूं चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है बल्कि पौधों में लौह तत्व की जैविक और रसायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने में और फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है.

दीर्घकालिन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिये खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर और बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी अरडू और जामुन आदि लगा दिये जाए तो पाले और ठंडी हवा के झोंको से फसल का बचाव हो सकता है.

पाले के दिनों में फसलों में सिंचाई करने से भी पाले का असर कम होता है. पौधशालाओं में पौधों और उद्यानों व नकदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलो को टाट, पॉलीथीन अथवा भूसे से ढक दे.

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