बासमती धान की खेती करने वाले किसान दें ध्यान! नाम और दाम दोनों को डुबो सकती है आपकी ये लापरवाही

बासमती चावल की खेती में कीटनाशकों के बिना खेती करने के लिए कई जैविक तरीके हो सकते हैं, जिनसे खेतीकर उचित मात्रा में उत्पादन कर सकते हैं।

बासमती धान की खेती करने वाले किसान दें ध्यान! नाम और दाम दोनों को डुबो सकती है आपकी ये लापरवाही
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भारत एक प्रमुख चावल उत्पादक देश है और बासमती चावल उसकी मुख्य किस्म है, जिसे दुनियाभर में मान्यता मिली है। हाल ही में केंद्र सरकार ने बासमती चावल को छोड़कर सभी तरह के कच्चे चावल के निर्यात पर बैन लगाया है, जिसका मतलब है कि अब देश बासमती के अलावा चावल की अन्य किस्मों का निर्यात नहीं करेगा। यह निर्णय किसानों के लिए बड़ी चुनौती पैदा कर सकता है, क्योंकि बिना कीटनाशक के बासमती चावल की खेती करना कठिन हो सकता है। इस लेख में हम देखेंगे कि बासमती की खेती में कीटनाशक के ना इस्तेमाल के क्या प्रभाव हो सकते हैं और कैसे जैविक तरीकों से इसमें सुधार किया जा सकता है।

बासमती चावल की खेती में कीटनाशक के प्रभाव:

कीटनाशकों के बिना बासमती चावल की खेती में कई चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। खरपतवार, पेड़ों की पत्तियों पर बीमारियाँ, और कीटों की हमले से खेती को नुकसान हो सकता है। खासकर, खरीफ फसलों की बुवाई और धान की फसल के समय, ये समस्याएं और भी बढ़ सकती हैं। इसलिए किसानों के लिए यह समय संवेदनशील होता है और वे अक्सर कीटनाशकों का उपयोग करते हैं ताकि वे अपनी फसल को खतरों से बचा सकें।

बासमती चावल के एक्सपोर्ट में प्रभाव:

भारत दुनियाभर में बासमती चावल का एक महत्वपूर्ण निर्यातक है और इसका आय 38,500 करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है। हालांकि, कुछ सालों से बासमती के एक्सपोर्ट में कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल के कारण परेशानी का सामना किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकारों ने भी कुछ समय पहले कुछ कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन यूरोपीय देशों की ओर से बासमती के एक्सपोर्ट में प्रतिबंध बढ़ने का कारण कुछ और था। यूरोपीय यूनियन की एक ऑडिट रिपोर्ट के बाद, उन्होंने यूरोपीय मानकों से अधिक कीटनाशकों की मात्रा के कारण भारतीय बासमती के एक्सपोर्ट में प्रतिबंध लगाया था।

बासमती चावल की खेती में जैविक तरीके:

बासमती चावल की खेती में कीटनाशकों के बिना खेती करने के लिए कई जैविक तरीके हो सकते हैं, जिनसे खेतीकर उचित मात्रा में उत्पादन कर सकते हैं। यह न केवल पर्यावरण के साथ साझा ज़िम्मेदारी है, बल्कि उनके एक्सपोर्ट में भी सुधार कर सकता है। नीचे दिए गए तरीकों से बासमती चावल की खेती में जैविक तरीके का इस्तेमाल करने के तरीके दिए गए हैं:

रासायनिक खाद की बजाय जैविक खाद का इस्तेमाल: खेतों में रासायनिक खाद की बजाय जैविक खाद का इस्तेमाल करने से सोलह कैरोटीन, विटामिन बी, पोटैशियम, और नाइट्रोजन जैसे महत्वपूर्ण पौष्टिक तत्व मिलते हैं, जो फसल के स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं।

जैविक खाद के साथ हल चलाना: खेतों में बासमती चावल की खेती के लिए बार-बार जैविक खाद के साथ हल चलाना फसल की भूमि को समतल और जन्त्री मुक्त बनाने में मदद कर सकता है।

जैविक प्रबंधन तंत्रों का उपयोग: बीमारियों और कीटों के खिलाफ लड़ने के लिए जैविक प्रबंधन तंत्रों का उपयोग करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

नैचुरल प्रोडक्ट्स के उपयोग: नीम, प्याज का पेस्ट, गोबर आदि नैचुरल प्रोडक्ट्स का उपयोग बासमती चावल की खेती में कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए किया जा सकता है।

बियो पेस्टिसाइड का उपयोग: बियो पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल करके बासमती चावल की खेती में कीटों के साथ साथ पौधों की सुरक्षा करने का एक बेहतर तरीका हो सकता है।

जैविक खेती के तरीकों की समझदारी से उपयोग: किसानों को जैविक खेती के तरीकों की समझदारी से उपयोग करने की जरूरत है, जैसे कि समय-समय पर जैविक खाद का उपयोग करना, पेड़ों को बिना कीटनाशक के बचाने की तकनीकें सीखना आदि।

जैविक तरीकों से कीटनाशक के बिना बासमती चावल की खेती करने से न केवल किसानों का स्वास्थ्य बल्कि उनकी आय भी बढ़ सकती है। बासमती चावल के एक्सपोर्ट में निर्यात की समस्या से छुटकारा पाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

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