किसान नहीं करवाना चाहते फसल बीमा, बोले -बीमा कंपनियां भर रही जेब, जानें फसल बीमा की सच्चाई?

कोटा. किसानों को फसल खराब से होने वाले नुकसान के भरपाई के लिए सरकार लंबे समय से फसल बीमा करवाती आ रही है, लेकिन किसानों की इन बीमा में कोई रुचि नहीं है

किसान नहीं करवाना चाहते फसल बीमा, बोले -बीमा कंपनियां भर रही जेब, जानें फसल बीमा की सच्चाई?
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कृषि जगत में बदलते समय के साथ, किसानों को अपनी फसलों को संरक्षित करने के लिए नए तरीके धुंदने की जरूरत होती है। इसी उद्देश्य से भारत सरकार ने फसल बीमा योजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य किसानों को अपनी फसलों के नुकसान से बचाना है। हालांकि यह योजना किसानों के बीच उलझनों का कारण बन चुकी है।

कोटा में फसल बीमा से किसान दूरी बनाए हुए हैं. उनका कहना है कि बीमा कंपनियां उन्हें ठगती हैं. फसल खराबा होने के बाद भी उन्हें क्लेम नहीं मिल पाता है, जबकि कृषि विभाग का दावा इसके उलट है. पढ़िए कैसे किसानों को नहीं मिल रहा फायदा...

फसल बीमा नहीं कराना चाह रहे किसान

कोटा. किसानों को फसल खराब से होने वाले नुकसान के भरपाई के लिए सरकार लंबे समय से फसल बीमा करवाती आ रही है, लेकिन किसानों की इन बीमा में कोई रुचि नहीं है. अधिकांश किसान ये बीमा नहीं करवाते हैं, जिसके चलते जब फसल खराब होता है, तब उन्हें क्लेम नहीं मिल पाता है, हालांकि इसका प्रीमियम जब किसान भरता है, तो उससे काफी कम राशि ही देनी पड़ती है. इसकी करीब 80 फीसदी राशि केंद्र और राज्य सरकार वहन करती है. इसके बावजूद स्वतः अपनी मर्जी से फसल बीमा करवाने वाले किसानों की संख्या 1 फीसदी भी नहीं है.

बीमा कंपनियां भर रही जेब : किसानों का आरोप है कि हमारे साथ बीमा कंपनियां धोखा कर देती हैं. फसल खराबा का आकलन क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट से ही किया जाता है. इसमें सर्वेयर अपने मनमर्जी से ही डिटेल भर देता है. किसान की पूरी बात नहीं मानी जाती और इसके चलते उन्हें बीमा का क्लेम पूरा नहीं मिल पाता है. कई किसान तो ऐसे हैं, जिनका कहना है कि प्रीमियम से भी आधी राशि उन्हें नहीं मिली है. कृषि विभाग के आंकड़े के अनुसार बीते 5 सालों में 2019 से लेकर अब तक 561 करोड़ रुपए का प्रीमियम मिला है, जबकि किसानों को जो क्लेम दिए गए हैं वह महज 204 करोड़ रुपए के हैं. इस पर किसानों का कहना है कि कंपनी अपनी जेब इस प्रीमियम के जरिए भर रही है.

कीमत और फायदे का अंतर: किसानों का आरोप है कि फसल बीमा की प्रीमियम और फायदों में बहुत बड़ा अंतर होता है। प्रीमियम भरने के बावजूद, फसल खराब होने पर क्लेम मिलने में दिक्कतें आती हैं।

बीमा कंपनियों का दावा: किसान आरोप लगाते हैं कि बीमा कंपनियां उनके साथ धोखाधड़ी करती हैं। फसल की खराबी का आकलन करते समय उनकी राय को नजरअंदाज किया जाता है और उन्हें क्लेम मिलने में मुश्किलाएं आती हैं।

सरकारी उदासीनता: किसानों का आरोप है कि सरकारी विभाग भी फसल बीमा के मामले में उदासीन है। फसल खराब होने के बाद क्लेम प्रक्रिया को लेकर विभाग की लापरवाही दिखाई देती है।

फसल बीमा की सच्चाई

किसानों के आरोपों के बावजूद, फसल बीमा की योजना में कुछ अच्छे भी पहलु हैं। यह उन्हें अपनी फसलों के खिलाफ होने वाली आपदाओं से बचाती है। हालांकि सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि फसल बीमा की सब प्रक्रियाएँ सही और पारदर्शी तरीके से होती हैं।

आवश्यक सुझाव

जागरूकता: किसानों को फसल बीमा की योजना के बारे में सही जानकारी देनी चाहिए।

पारदर्शी प्रक्रिया: बीमा कंपनियों को फसल खराब होने पर क्लेम प्रक्रिया को पारदर्शी और तेज़ बनाने की आवश्यकता है।

सरकारी सहायता: सरकार को फसल बीमा की योजना को सफल बनाने के लिए सहायता प्रदान करनी चाहिए।

फसल बीमा योजना की सफलता उसकी पारदर्शी और सही प्रक्रियाओं पर निर्भर करेगी। किसानों को सही जानकारी और सहायता मिलनी चाहिए ताकि वे इस योजना का उचित तरीके से लाभ उठा सकें।

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