मोटे अनाजों की फसलों को बारिश के पानी से बचाने के लिए किसान करें ये काम, वैज्ञानिक सलाह
भारतीय किसानों के लिए मोटे अनाजों की फसलें महत्वपूर्ण स्रोत हैं, लेकिन मॉनसून के दौरान वर्षा की प्राप्ति से उनके फसलों को खतरा हो सकता है। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने एक सलाह दी है - मोटे अनाजों की फसलों में बारिश के पानी को तत्काल निकालना।
वर्षा के बाद अगर मोटे अनाजों की फसलों में वर्षा जल जम जाता है, तो यह फसलों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, मोटे अनाजों की फसलों में वर्षा जल को तत्काल निकाल देना चाहिए। इससे फसलों को कीटों और बीमारियों का संकट कम होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, ज्वार, बाजरा, सांवा, कोदों, ककून, रागी आदि मोटे अनाजों की फसलों में जमा वर्षा जल का प्रबंधन महत्वपूर्ण है। वर्षा जल के बहाव को नियंत्रित रखने से फसलों की वृद्धि में सुधार होता है और उन्हें कीटों और बीमारियों से बचाने में मदद मिलती है।
डा. सीपी श्रीवास्तव, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक और नमामि गंगे परियोजना के राज्य सलाहकार, किसानों से यह सलाह देते हैं कि वर्षा की बादल थमने के बाद उन्हें अपनी फसलों में जमा वर्षा जल को तत्काल निकाल देना चाहिए।
वर्षा के बाद मोटे अनाजों की फसलों में वर्षा जल को निकालने से फसलों के प्रति कीटों और बीमारियों का प्रसार कम होता है। इसके साथ ही, फसलों को नियंत्रित रूप से पानी प्रदान करने से उनकी वृद्धि में भी सुधार होता है।
इसके अलावा, डा. श्रीवास्तव ने धान की फसल के लिए टॉप ड्रेसिंग की महत्वपूर्णता पर भी बल दिया है। वे यह सुनिश्चित करने के लिए कहते हैं कि धान की फसल में पानी जमा है तो उसकी निगरानी शुरू करें और कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए उपायों का पालन करें। वे छोटे और मझोले किसानों को यूरिया की बजाय गौमूत्र और गोबर से बनाए जाने वाले जीवामृत का उपयोग करने की सलाह देते हैं।