पिछले 70 सालों में जीरा पहली बार पहुंचा 73000 रुपए प्रति क्विंटल, इसके आगे सोना भी पड़ा फीका

जीरे की बुवाई के लिए बीघा जमीन में आमतौर पर 25-30 हजार की आय होती है। जीरे की फसल को लगभग 90 दिनों में तैयार कर लिया जाता है

पिछले 70 सालों में जीरा पहली बार पहुंचा 73000 रुपए प्रति क्विंटल, इसके आगे सोना भी पड़ा फीका
X

[26/07, 11:22 AM] Deep Verma: पिछले 70 सालों में जीरा पहली बार पहुंचा 73000 रुपए प्रति क्विंटल, इसके आगे सोना भी पड़ गया फीका


जीरा एक छोटा सा बीज है, जिसका उपयोग भारतीय खाने में सुगंध और स्वादिष्टता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, जीरे के आयुर्वेदिक गुण भी काफी महत्वपूर्ण हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं। यहां हम जीरे के औषधीय गुण, मांग, और उपयोग के बारे में जानेंगे:

औषधीय गुण:

जीरा को भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण औषधि माना जाता है। इसमें कई पोषक तत्व जैसे विटामिन्स, मिनरल्स, एंटीऑक्सिडेंट्स, और फाइबर पाए जाते हैं, जो हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं।

ऊंट के मुंह में जीरे की कहावत के दिन अब लद गए हैं क्योंकि जीरे ने महंगाई के 70 वर्षों के सारे रिकॉर्ड तोड़कर वर्ष 22 जुलाई 2023 जुलाई में अधिकतम मूल्य प्रति क्विंटल 73000 रुपये पर पहुंचकर तिजोरी में अपना राज कर लिया है। हर घर में पाया जाने वाला एक चुटकी जरा जो हर खाने को सुगंधित और स्वादिष्ट बना देता है उसके औषधीय गुण, मांग और खपत के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुलाई के महीने में जीरे ने एक चुटकी जीरा रसोई में इस्तेमाल करने को सोने के बराबर बना दिया है। जीरा अब रसोई में नहीं तिजोरी में रखा जाएगा।

जीरे की खेती मौसम की मेहरबानी पर अधिक निर्भर करती है। जब किसानों ने देखा कि सरसों या अन्य खेती में जीरे की तुलना में कम जोखिम है उन्होंने जीरे की बुवाई का काम शुरू किया। गुजरात के मेहसाणा में जूनामां गांव के भाई जेठ गंगाराम पटेल उंझा के मुताबिक कृषि उत्पादन मंडी जीरे के दाम तय करती है। आमतौर पर एक बीघा जमीन में बुवाई के लिए 25-30 हजार की आय होती है। 90 दिनों में फसल तैयार कर ली जाती है और इसका अनुमानित मूल्य प्रति क्विंटल 21000 के लगभग उन दिनों था। ऊंझा मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष सीताराम भाई पटेल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि जब जीरे के दाम बढ़ते हैं के जी देख में जैसे ही फायदा हुआ तो बीते वर्ष 2 साल में 95000 हेक्टेयर में हेक्टेयर में जीरे की बुवाई जो होती थी उसे अगले साल 3 लाख 48000 हेक्टेयर में किया गया।

अन्तास्थि शोथन: जीरे में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट्स शारीर की अंतास्थि को संधि को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करते हैं। यह अर्थराइटिस और रिवायवटिस्ट के लिए लाभदायक होता है।

पाचन शक्ति: जीरा पाचन को सुधारने और पेट संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। यह अपच, गैस, और एसिडिटी को कम करने में सक्षम होता है।

वजन घटाने में मदद: जीरे में पाया जाने वाला एक उपयोगी तत्व है पानी या जलेबी के बीच में भूख को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह वजन घटाने में मदद कर सकता है।

मांग:

जीरे की मांग भारत भर में बढ़ती जा रही है। यह अपने औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी उपयोगी होने के कारण लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहा है। विभिन्न खाद्य समृद्ध विशेषज्ञता जैसे अन्य खेती उत्पादों के मुकाबले जीरे की खेती खास रूप से कम जोखिम वाली बात बन गई है।

उपयोग के चलते वृद्धि:

जीरे के उपयोग में वृद्धि आना एक संख्यात्मक तथ्य है। महसाणा के गांव जूनामां में जीरे के उपयोग में वृद्धि के पीछे मौसम की मेहरबानी एक बड़ा कारक है। यदि आम खेती जैसे सरसों या अन्य फसलों में जोखिम कम होता है तो लोग जीरे की खेती में रुचि दिखाने लगते हैं।

जीरे की रखरखाव और बुवाई:

जीरे की बुवाई मौसम की मेहरबानी पर काफी निर्भर करती है। यह फसल की उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए उचित मौसम और भूमिगत सुविधाएं आवश्यक होती हैं। जीरे की बुवाई के लिए बीघा जमीन में आमतौर पर 25-30 हजार की आय होती है। जीरे की फसल को लगभग 90 दिनों में तैयार कर लिया जाता है और इसका अनुमानित मूल्य प्रति क्विंटल 21,000 रुपये होता था।

जीरे की महसाणा मंडी में उछाल पर, उन्झा मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष सीताराम भाई पटेल ने जीरे के दामों में बढ़ोतरी के चलते किसानों की रुचि में वृद्धि के बारे में बताया है। वे कहते हैं कि जीरे के दाम बढ़ने से किसानों को लाभ हुआ है और इसके परिणामस्वरूप पिछले सालों में जीरे की बुवाई में वृद्धि देखी गई है।

इस तरह, छोटे से जीरे की कहानी ऊंट के मुंह से तिजोरी तक पहुंची है। जीरे के औषधीय गुण, मांग, और उचित मौसम के साथ यह फसल भारतीय खाने को सुगंधित बनाने के साथ-साथ खेती में भी एक लाभदायक विकल्प साबित हो रही है।

Tags:
Next Story
Share it