सरसों और राई की फसल में रोग प्रबंधन से पाएं अधिक पैदावार, किसानों के लिए फायदेमंद

भारत के अनेक राज्यों में, सरसों और राई की खेती मुख्य धान्य की कृषि में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

सरसों और राई की फसल में रोग प्रबंधन से पाएं अधिक पैदावार, किसानों के लिए फायदेमंद
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भारत के अनेक राज्यों में, सरसों और राई की खेती मुख्य धान्य की कृषि में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इन फसलों की कई तरह के कीट और रोगों से निपटना किसानों के लिए एक बड़ा चुनौती हो सकता है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने अपने कृषि मौसम विभाग के माध्यम से किसानों को सुरक्षित फसल उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण सुझाव प्रदान किए हैं।

सरसों की फसल के लिए रोग प्रबंधन

सरसों की फसल में तना गलन, झुलसा रोग, सफेद रोली रोग, और तुलासिता रोग के प्रभाव से किसानों को नुकसान हो सकता है। इससे बचाव के लिए, किसानों को समय-समय पर निगरानी रखनी चाहिए। फसल में सफेद रतुआ बीमारी के लक्षण दिखाई देते ही, 600-800 ग्राम मैंकोजेब (डाइथेन एम-45) को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए।

राई की फसल के लिए कीट प्रबंधन

राई की फसल में आरा मक्खी और माहू जैसी कीटों का प्रभाव हो सकता है, जिससे किसानों को उत्पादन में कमी हो सकती है। इसके लिए, किसानों को नजदीकी कृषि विभाग से संपर्क करके सही उपायों को अपनाना चाहिए।

स्वस्थ बीज का उपयोग

रोग रोधी किस्मों का प्रयोग करने से बीज के साथ लगे कवक रोगजनकों की संभावना को कम किया जा सकता है। इसके लिए, किसानों को अपने खेतों में स्वस्थ बीज का उपयोग करना चाहिए।

हल्की सिंचाई का महत्व

पाले का आंदेशा होने पर हल्की सिंचाई करना भी फसल को सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विभाग के मौसम पूर्वानुमान को ध्यान में रखकर इस उपाय का प्रयोग करना चाहिए।

किसानों के लाभ

किसान अगर समय पर उपचार कर फसलों को सुरक्षित रखता है, तो उसे कम लागत में अधिक उत्पादन हो सकता है। इससे उन्हें अच्छा मुनाफा होगा और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

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