फसलों में जिप्सम का नहीं कर रहे हैं सही से उपयोग, तो जान लीजिए इसके नुकसान, जिप्सम पर सरकार दे रही 50% अनुदान, मौके का फायदा अवश्य उठाएं

हरी खाद या गोबर की खाद का प्रयोग भी जिप्सम की दक्षता को बढ़ा सकता है। इसके अलावा, जिप्सम को फसल की बुआई से पहले खेत में डालना बेहतर होता है।

फसलों में जिप्सम का नहीं कर रहे हैं सही से उपयोग, तो जान लीजिए इसके नुकसान, जिप्सम पर सरकार दे रही 50% अनुदान, मौके का फायदा अवश्य उठाएं
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फसलों में जिप्सम का नहीं कर रहे हैं सही से उपयोग, तो जान लीजिए इसके नुकसान, जिप्सम पर सरकार दे रही 50% अनुदान, मौके का फायदा अवश्य उठाएं

जिप्सम का प्रयोग दलहनी और तिलहनी फसलों में उत्पादन में वृद्धि के लिए एक सस्ता और अच्छा स्त्रोत है। जिप्सम की महत्वपूर्ण गुणधर्मों के कारण, इसका प्रयोग न केवल फसलों की मात्रा में बढ़ोतरी करता है, बल्कि भूमि का स्वास्थ्य भी बनाए रखता है।

जिप्सम के उपयोगी गुण

पौधों के लिए गंधक एक महत्वपूर्ण पोषण तत्व है, जो जिप्सम में पूर्णता से मौजूद है।

तिलहनी फसलों में फास्फोरस के बराबर मात्रा में गंधक की आवश्यकता होती है, जिसे जिप्सम पूर्ण करता है।

जिप्सम का दक्ष प्रयोग

जिप्सम को सही तरीके से मिट्टी में मिलाने के लिए उपयुक्त तकनीकों का पालन करना आवश्यक है। बुआई से पहले, मिट्टी में जिप्सम को डालना चाहिए। हरी खाद या गोबर की खाद का प्रयोग भी जिप्सम की दक्षता को बढ़ा सकता है। इसके अलावा, जिप्सम को फसल की बुआई से पहले खेत में डालना बेहतर होता है।

जिप्सम की मात्रा फसल सुझाव

250 किलोग्राम प्रति हेक्टर दलहनी और तिलहनी खेत में मिलाने से पहले

8-10 क्विंटल प्रति हेक्टर भूमि सुधारने हेतु आवश्यकतानुसार मिट्टी परीक्षण के आधार पर

फसलों में जिप्सम के प्रयोग के फायदे

दलहनी फसलें

प्रोटीन की अधिक मात्रा में फसल पैदा होती है, जिससे दाने सुडोल और चमकदार बनते हैं।

जिप्सम के प्रयोग से पौधों की जड़ों में राईजोबियम जीवाणु की क्रियाशीलता बढ़ती है, जिससे पौधे नाईट्रोजन को अधिक से अधिक उपयोग कर सकते हैं।

तिलहनी फसलें

रबी की मुख्य फसलों में गंधक के उपयोग से दानों में तेल की मात्रा में बढ़ोतरी होती है, और दाने सुडौल और चमकीले बनते हैं।

तिलहनी की उपज में 10-15% की बढ़ोतरी होती है।

गेंहू में

जिप्सम के उपयोग से खाद्यान्न फसलों में गंधक पोषक तत्व की विशेषता मात्रा में बढ़ती है।

जिप्सम का उपयोग समर्थन शास्त्रीय खेती तकनीकों के साथ करके, दलहनी और तिलहनी फसलों के उत्पादन को मजबूती देने का एक प्रमुख साधन है। इसके सही और उचित प्रयोग से किसान अपनी आजीविका को सुरक्षित कर सकता है और उत्तम उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ा सकता है।

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