किसानों के लिए जरूरी खबर! सर्दी से सड़ने-गलने लगती हैं फसलें, बचाव के अपनाए ये आसान तरीका

किसानों के लिए जरूरी खबर! सर्दी से सड़ने-गलने लगती हैं फसलें, बचाव के अपनाए ये आसान तरीका
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भारत में छह प्रकार के मौसम होते हैं, जो हर दो से तीन महीनों में बदलते रहते हैं। इन बदलते मौसमों का किसानों पर अधिक प्रभाव पड़ता है। इसलिए, हर मौसम में वे अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के पैंतरे आजमाना पड़ते हैं। ठंड का मौसम वर्तमान में देश में है।

इस मौसम में पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे फसलों को नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है। किसानों को इस समय में सावधान रहने की आवश्यकता होती है। हमारे पर्यावरण में निरंतर परिवर्तन देखने को मिल रहा है, जिसका फसलों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। ठंड के मौसम में धरती पर ओस जमा होती है, जो पाला पड़ने की संभावना बढ़ाती है और फसलों को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है।

किसानों को इस मौसम में कई नुकसान झेलना पड़ता है। गेहूं और जौ में उतने ही 20% तक नुकसान होता है, जितने की इनमें कमी आती है। सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अफीम, मटर, चना, गन्ना आदि में नुकसान लगभग 30% से 40% तक होता है, जबकि आलू, टमाटर, मिर्ची, बैंगन आदि सब्जियों में यह नुकसान 40% से 60% तक हो सकता है।

पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं में मौजूद जल के कण बर्फ में बदल जाते हैं। इससे पौधों की कोशिकाएं घने हो जाती हैं, जिससे उन्हें विभिन्न क्रियाओं को समायोजित करने में समस्याएं आ सकती हैं। ये समस्याएं कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, और वाष्प उत्सर्जन जैसी जरूरी प्रक्रियाओं में असमर्थता का कारण बन सकती हैं। इससे पौधे विकृत हो सकते हैं और इससे फसल को नुकसान हो सकता है, उपज और गुणवत्ता में कमी आ सकती है।

बिन खर्च के पाले से कैसे करें बचाव

फसलों को पाले से बचाने के कई तरीके हैं. इनमें कुछ तो देशी जुगाड़ है और साथ ही दवाईयों की सहायता भी ली जाती है. देशी जुगाड़ की बात करें तो, धुएं से वातावरण को गर्म करें या फिर सिचांई करें. इन दोनों जुगाड़ के अलावा खेत में रस्सी से फसलों को हिलाते रहें, जिससे फसल पर पड़ी हुई ओस गिर जाती है और फसल पाले से बच जाती है.

फसलों के बचाव के लिए दवाईयों का उपयोग

पाले से बचाव के लिए दवाइयों की सहायता भी ली जा सकती है. यूरिया की 20 Gr/Ltr पानी की दर से घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए. अथवा 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें. इसके आलावा घुलनशील सल्फर 80% डब्लू डी जी की 40 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है. ऐसा करने से पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जीवद्रव्य का तापमान बढ़ जाता है.

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