अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही 'इंदौर कंपोस्ट विधि' आज भी है बरकरार, छोटे से गड्ढे में कम खर्च बनाये कीमती कंपोस्ट खाद, जानिए खासियत

प्रत्येक भाग को अलग-अलग भरा जाता है, और अंतिम हिस्सा खाद पलटने के लिए खाली छोड़ा जाता है।

अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही इंदौर कंपोस्ट विधि आज भी है बरकरार, छोटे से गड्ढे में कम खर्च  बनाये कीमती कंपोस्ट खाद, जानिए खासियत
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अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही 'इंदौर कंपोस्ट विधि' आज भी है बरकरार, छोटे से गड्ढे में कम खर्च बनाये कीमती कंपोस्ट खाद, जानिए खासियत

इंदौर कंपोस्ट विधि, जो कि अंग्रेजों के जमाने से मशहूर है, एक शक्तिशाली और प्रभावी तकनीक है जो छोटे से गड्ढों में बनाई जाने वाली जैविक खाद के माध्यम से खेतों को पौष्टिक बनाती है। इस विशेष तकनीक को 'इंदौर पद्धति' कहा जाता है, और इसका प्रमुख योगदान अल्बर्ट हॉवर्ट ने किया।

इंदौर कंपोस्ट विधि क्या है?

इंदौर कंपोस्ट विधि का आरंभ 1925 में हुआ था, जब अल्बर्ट हॉवर्ट ने इंदौर इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री में जैविक उर्वरकों पर अनेक शोधों के बाद इस तकनीक को विकसित किया। इस विधि के अनुसार, गड्ढे बनाए जाते हैं और उन्हें विभिन्न भागों में बांटा जाता है, जिससे इंदौर कंपोस्ट तैयार होता है।

इंदौर कंपोस्ट विधि के लाभ

जैविक खेती के लिए आदर्श

यह तकनीक पूरी दुनिया में जैविक खेती के लिए प्रसिद्ध है और कई देशों ने इसे अपनाया है। इंदौर कंपोस्ट में विभिन्न पोषण तत्व होते हैं, जो पौधों की सुरक्षित और आयुर्वर्ती विकास में मदद करते हैं। साथ ही यह विधि घरेलू कचरे से बनाई जा सकती है और किसानों को सस्ती से जैविक खाद प्रदान करती है।

इंदौर कंपोस्ट विधि कैसे काम करती है:

गड्ढे तैयारी: 9x5x3 फीट आकार के गड्ढे बनाए जाते हैं और इन्हें 3 से 6 भागों में बांटा जाता है।

भराई जाने वाली गड्ढों में भागवानी: प्रत्येक भाग को अलग-अलग भरा जाता है, और अंतिम हिस्सा खाद पलटने के लिए खाली छोड़ा जाता है।

जैविक खाद तैयार: गड्ढों में बनाई जाने वाली खाद को पौधों के लिए उपयोग के लिए तैयार किया जाता है, जिससे उच्च उत्पादकता होती है।

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