नरमा फसल की ऐसे सिंचाई करने से बढ़ेगी पैदावार, जानें कब और कितनी देर दें पानी

कपास, भारत की मुख्य नकदी फसलों में से एक है और इसमें सफलता प्राप्त करने के लिए सही तकनीकों का प्रयोग करना महत्वपूर्ण है।

नरमा फसल की ऐसे सिंचाई करने से बढ़ेगी पैदावार, जानें कब और कितनी देर दें पानी
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कपास, भारत की मुख्य नकदी फसलों में से एक है और इसमें सफलता प्राप्त करने के लिए सही तकनीकों का प्रयोग करना महत्वपूर्ण है। यहां हम बात करेंगे कपास की बीज से लेकर सिंचाई और उर्वरक के तकनीकी पहलुओं की।

कपास की बुआई का समय बहुत महत्वपूर्ण है। इसे अप्रैल के प्रथम सप्ताह से मई के प्रथम सप्ताह तक करना चाहिए। बुआई के लिए 12 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से काम कर सकता है। बुआई से पहले, बीज को धूमित करके और जिंक सल्फेट के साथ मिलाकर तैयार करना उपयुक्त है।

गुलाबी लट की रोकथाम के लिए बीज को धूमित करना महत्वपूर्ण है। धूमित करने के लिए 3 ग्राम एल्यूमिनियम फास्फाईड का उपयोग करें और बीज को धूमित अवस्था में रखें। अगर धूमित करना संभव नहीं हो, तो बीज को तेज धूप में सुखाएं।

कपास को सही मात्रा में उर्वरक प्रदान करना अद्भुत पैदावार के लिए महत्वपूर्ण है। गोबर की खाद को बड़ी मात्रा में फसल चक्र में डालना चाहिए। इसके साथ ही, नत्रजन और फास्फोरस की भी उचित मात्रा मिलाकर देना चाहिए।

अच्छी सिंचाई से कपास का पौधों को उचित पानी मिलता है और फसल में वृद्धि होती है। पहली सिंचाई बोने के 35-40 दिन बाद करें और इसके बाद हर 25-30 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। सिंचाई के लिए नाइट्रोजन की मात्रा को मिट्टी परीक्षण के आधार पर तय करें।

कपास की खेती में उपरोक्त तकनीकों का प्रयोग करके किसान अधिक पैदावार और अच्छी गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त कर सकता है। इन तकनीकों का सही तरीके से अनुसरण करने से किसान अधिक मुनाफा कमा सकता है और कपास की खेती में सफलता प्राप्त कर सकता है।

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