किसानों के माथे पर चिंता की लकिरे! गेंहू का उत्पादन घटकर हुआ आधा, गेहूं के अलावा चने और मटर की फसल भी खराब

किसानों के माथे पर चिंता की लकिरे! गेंहू का उत्पादन घटकर हुआ आधा, गेहूं के अलावा चने और मटर की फसल भी खराब
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किसानों के माथे पर चिंता की लकिरे! गेंहू का उत्पादन घटकर हुआ आधा, गेहूं के अलावा चने और मटर की फसल भी खराब

खेत खजाना : इंदौर के किसानों को इस बार रबी सीजन में गेहूं की फसल से बड़ा झटका लगा है। जहां वे 12 से 18 क्विंटल प्रति बीघा गेहूं की उम्मीद लगाए बैठे थे, वहां उन्हें 6 से 8 क्विंटल प्रति बीघा ही गेहूं मिल रहा है। इसका कारण है मौसम का अनुकूल न होना। अक्टूबर और नवंबर में ठंड का न होना, दो से तीन बार मावठा गिरना और धुंध और कोहरे का लगातार रहना गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाया है। इससे किसानों को लागत भी नहीं निकल रही है। वे सरकार से सर्वे कराने और फसल बीमा के माध्यम से मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं।

गेहूं की फसल का हाल

इंदौर जिले में रबी सीजन में तकरीबन 2 लाख 40 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि पर गेहूं की फसल लगाई गई थी। इसमें से अब तक केवल 10 से 15 फीसदी फसल काटी गई है। बाकी की फसल का काटना अभी बाकी है। जो फसल काटी गई है, उसमें उत्पादन बहुत कम रहा है। किसानों का कहना है कि इस बार गेहूं की फसल का उत्पादन आधा ही रह गया है। उन्हें लागत भी नहीं निकल रही है। वे इसके लिए मौसम को जिम्मेदार मानते हैं।

गेहूं की फसल को नुकसान कैसे हुआ?

गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाने के लिए मौसम का बहुत बड़ा हाथ रहा है। इस बार शीतलहर नवंबर के आखिर में शुरू हुई थी। इससे पहले तापमान उच्च रहा था। इसके कारण गेहूं की फसल को ठंड का लाभ नहीं मिल सका। गेहूं की फसल को ठंड की जरूरत होती है, ताकि उसका दाना अच्छा बने। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।

इसके अलावा, दो से तीन बार मावठा गिरने से भी गेहूं की फसल को नुकसान हुआ है। मावठा गिरने से गेहूं की फसल की जड़ें कमजोर हो गई हैं। इससे गेहूं का दाना छोटा और कम वजनी हो गया है। इसके अतिरिक्त, धुंध और कोहरे का लगातार रहना भी गेहूं की फसल को प्रभावित किया है। धुंध और कोहरे के कारण गेहूं के फूल जल गए हैं। इससे गेहूं का दाना बनने में दिक्कत हुई है।

किसानों की मांग

किसानों का कहना है कि इस बार गेहूं की फसल का उत्पादन इतना कम हुआ है कि वे अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं। वे इसके लिए सरकार से सर्वे कराने और फसल बीमा के माध्यम से मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं। वे कहते हैं कि अगर सरकार उनकी मदद नहीं करती है, तो वे आर्थिक तंगी का शिकार हो जाएंगे। वे चाहते हैं कि सरकार उनकी बात सुने और उन्हें न्याय दिलाए।

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