केसर की खेती करने के लिए कश्मीर जाने की जरूरत नहीं, किसान ने 30/12 के कमरे में खेती कर कमाए लाखों रूपये, ₹3 लाख प्रति किलो बिकती है केसर
अब हिमाचल प्रदेश के सोलन में, एक युवक गौरव सबरवाल ने केसर की खेती को एक नई दिशा देने का काम किया है। उन्होंने अपने खेती के जरिए लाखों की कमाई करने का सफर तय किया है।
केसर की खेती करने के लिए कश्मीर जाने की जरूरत नहीं, किसान ने 30/12 के कमरे में खेती कर कमाए लाखों रूपये, ₹3 लाख प्रति किलो बिकती है केसर
केसर की खेती सोलन के युवक गौरव सबरवाल ने अपने घर के कमरे में बड़े ही अनोखे तरीके से शुरू की है, जोने एयरोपॉनिक्स के जरिए केसर की खेती कर उन्होंने कमाल कर दिखाया है। बिना मिट्टी और पानी के केसर की खेती से वह लाखों कमा रहे हैं।
केसर, जिसे 'लाल गुलाबी सुंदरी' के नाम से भी जाना जाता है, एक महंगा और मूल्यवर्धित मसाला है, जिसका उपयोग खासतर स्वादिष्ट खाने और विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। यह किंग ऑफ स्पाइसेस के रूप में जाना जाता है, केसर की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा हो सकता है।
अब हिमाचल प्रदेश के सोलन में, एक युवक गौरव सबरवाल ने केसर की खेती को एक नई दिशा देने का काम किया है। उन्होंने अपने खेती के जरिए लाखों की कमाई करने का सफर तय किया है।
एयरोपॉनिक्स से केसर की खेती
गौरव सबरवाल ने केसर की खेती के लिए अनोखे तरीके का इस्तेमाल किया है। वे एयरोपॉनिक्स तकनीक का उपयोग करके केसर को उगाते हैं। एयरोपॉनिक्स एक ऐसी तकनीक है जिसमें पौधों को पानी और पोषण आपूर्ति के साथ वायु में उगाया जाता है, बिना मिट्टी के। इसके परिणामस्वरूप, खेती की लागत कम होती है और उत्पादन बेहद उच्च होता है।
गौरव के मुताबिक, उन्होंने पहली बार केसर खेती करने में आठ लाख रुपये निवेश किए और अब उन्हें इसके लिए लाखों की कमाई हो रही है।
केसर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
केसर की खेती के लिए ठंडे इलाकों की जलवायु अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए विशेष तरह की मिट्टी की जरूरत होती है। हिमाचल प्रदेश के सोलन में यह जलवायु मिलती है, और इसलिए गौरव ने यहाँ केसर की खेती को विकसित किया है।
यह उपयुक्त जलवायु के साथ एयरोपॉनिक्स का उपयोग करने से उन्होंने केसर की खेती को सफल बनाया है, जिससे वह और भी लोगों को इस क्षेत्र में प्रेरित कर रहे हैं।
केसर की खेती केवल कश्मीर ही मानी जाती थी, लेकिन गौरव सबरवाल के प्रयासों से यह उन्नत प्रदेशों में भी संभावना है। एयरोपॉनिक्स के तरीके के उपयोग से खेती की लागत कम होती है, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा हो सकता है।
इस खेती के बाद, गौरव सबरवाल अब अन्य लोगों को भी इस तरह की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, जो न केवल अपने जीवन को बेहतर बना रहे हैं, बल्कि केसर की मांग को पूरा करने में भी मदद कर रहे हैं।