एफसीआई द्वारा की गई चावल की दो नीलामी में सिर्फ 460 टन चावल की बिक्री

एफसीआई द्वारा की गई चावल की दो नीलामी में सिर्फ 460 टन चावल की बिक्री
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मेघाच्छादित क्षेत्रों में चावल उगाने वाले किसानों के लिए एफसीआई की नीलामी में ग्राहकों की कमी आई है। एफसीआई ने चावल की नीलामी के दो चरणों में केवल 460 टन चावल बेचे हैं, जबकि कुल 7.51 लाख टन थीं। केंद्रीय सरकार ने राज्यों को खुदरा बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत बोली लगाने से रोक दिया है, जो इसका कारण बना है। एफसीआई द्वारा आयोजित ई-नीलामी में चावल के खरीदार नहीं मिल रहे हैं।

ओएमएसएस के तहत केंद्र सरकार ने केंद्रीय पूल से गेहूं और चावल की बिक्री को खुले बाजार में खुदरा विक्रेताओं, प्रोसेसर्स और व्यापारियों के लिए अनुमति दी है। इससे केंद्र सरकार की कोशिश है कि वे मुद्रा की दर को नियंत्रित कर सकें। एफसीआई की ई-नीलामी में भाग लेने के लिए अधिक से अधिक व्यापारी और बाजार में चावल और गेहूं उपलब्ध हो सकें इसलिए केंद्र सरकार ने राज्यों को ओएमएसएस के तहत गेहूं और चावल देने से मना कर दिया है।

एफसीआई की ई-नीलामी में 12 जुलाई को केवल 290 टन चावल की बिक्री हुई, जबकि 3.63 लाख टन चावल उपलब्ध थीं। इसी तरह, 5 जुलाई की नीलामी में भी केवल 170 टन चावल बिक्री हुई, जबकि 3.88 लाख टन की पेशकश हुई थी। जब गेहूं की बात आती है, तो 12 जुलाई की नीलामी में 4.18 लाख टन गेहूं उपलब्ध था, लेकिन खरीदारों ने केवल 42 फीसदी यानी लगभग 1.75 लाख टन के लिए बोली दी। 5 जुलाई की नीलामी में 4.07 लाख टन पेशकश के मुकाबले केवल 1.29 लाख टन गेहूं खरीदे गए थे।

इसके अलावा, कर्नाटक और झारखंड सरकारों ने भी केंद्र सरकार के इस निर्णय का विरोध किया है। कर्नाटक सरकार ने यह कहकर इस फैसले की आलोचना की है कि उन्हें अपनी महत्वपूर्ण "अन्न भाग्य योजना" पर असर डालने के लिए इस निर्णय को लिया गया है, जबकि एफसीआई को चावल 34 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर बेचने की मंजूरी दे दी गई थी। झारखंड सरकार ने भी हाल ही में इस निर्णय का आपत्तिजनक विरोध किया है, क्योंकि उन्हें अपनी कल्याणकारी योजनाओं के लिए महंगे दामों पर चावल खरीदना पड़ रहा है।

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