गेहूं की फसल में मच्छर, तेला व चेपा रोग के उपाये, यह रोग फरवरी-मार्च के महीनों में आता है अधिक, रोकथाम, जानें कृषि विशेषज्ञ की राय

गेहूं की फसल में मच्छर, तेला व चेपा रोग के उपाये, यह रोग फरवरी-मार्च के महीनों में आता है अधिक, रोकथाम, जानें कृषि विशेषज्ञ की राय
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गेहूं की फसल में मच्छर, तेला व चेपा रोग के उपाये, यह रोग फरवरी-मार्च के महीनों में आता है अधिक, रोकथाम, जानें कृषि विशेषज्ञ की राय

खेत खजाना : गेहूं की फसल में तेला व चेपा रोग एक आम समस्या है, जो किसानों को परेशान करती है. इस रोग के कारण गेहूं की फसल की पैदावार में कमी आती है और बीजों की गुणवत्ता भी खराब होती है. इस रोग के जिम्मेदार दो प्रकार के कीट होते हैं, जिन्हें ऐफिड और थ्रीपंस कहते हैं. ये कीट गेहूं की फसल के बालियों और पत्तियों पर आक्रमण करते हैं और उनका रस चूसते हैं. इससे फसल के पत्ते चिपचिपे, तेलिए और काले रंग के हो जाते हैं और बालियों में दाना नहीं बन पाता है.

इस रोग का प्रकोप अधिकतर फरवरी और मार्च के महीनों में होता है, जब मौसम में नमी और ठंडी होती है. इसलिए, किसानों को इस रोग की रोकथाम और बचाव के लिए समय-समय पर फसल का निरीक्षण करना चाहिए और आवश्यकतानुसार उर्वरक और कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए. इस लेख में हम आपको इस रोग के लक्षण, कारण और नियंत्रण के बारे में विस्तार से बताएंगे.

गेहूं की फसल में तेला व चेपा रोग के लक्षण

इस रोग के लक्षण फसल के बालियों और पत्तियों पर दिखाई देते हैं. इनमें से कुछ प्रमुख लक्षण हैं:

बालियों पर काले रंग का चिपचिपा सा रोग दिखाई देता है, जिसमें दाना नहीं बनता है.

पत्तियों पर पीले, सफेद या हरे रंग के छोटे-छोटे कीट दिखाई देते हैं, जो उनका रस चूसते हैं.

पत्तियों का रंग फीका पड़ जाता है और उन पर बहुत छोटे पीले बिंदु नुमा फफोले उभरते हैं.

पत्तियों पर पीले से नारंगी रंग की धारियों आमतौर पर नसों के बीच के रूप में दिखाई देती हैं.

पत्तियों का छूने पर उंगलियों और कपड़ों पर पीला पाउडर या धूल लग जाती है.

पहले यह रोग खेत में 10-15 पौधे पर एक गोल दायरे के रूप में होकर बाद में पूरे खेत में फैलता है.

गेहूं की फसल में तेला व चेपा रोग के कारण

इस रोग के कारण दो प्रकार के कीट होते हैं, जिन्हें ऐफिड और थ्रीपंस कहते हैं. ऐफिड के कीट काले रंग के होते हैं और वे फसल के बालियों पर आक्रमण करते हैं. थ्रीपंस के कीट हरे रंग के होते हैं और वे फसल के पत्तियों पर आक्रमण करते हैं. ये कीट फसल का रस चूसते हैं और उन्हें चिपचिपा, तेलिया और काला बना देते हैं. इससे फसल की पैदावार में कमी आती है और बीजों की गुणवत्ता भी खराब होती है.

इस रोग का प्रकोप अधिकतर फरवरी और मार्च के महीनों में होता है, जब मौसम में नमी और ठंडी होती है. इसलिए, किसानों को इस रोग की रोकथाम और बचाव के लिए समय-समय पर फसल का निरीक्षण करना चाहिए

जानें कृषि विशेषज्ञ की राय

तेला व चेपा रोग से कैसे करें रोकथाम: कृषि विशेषज्ञ डॉ. बलबीर भान सिंह ने बताया कि इस रोग से बचाव के लिए किसानों को 60 दिन से बड़ी फसल में यूरिया नहीं डालनी चाहिए. डॉ. बलबीर भान ने बताया कि गर्म दिन आते ही फरवरी तथा मार्च के आरंभ में यह रोग आता है. उन्होंने कहा कि ऐसे मौसम में फसलों में थोड़ा पीला पन रखकर ही फसल को इस रोग से बचाया जा सकता है. रोग होने पर उपाय के लिए डॉक्टर ने बताया कि यह अधिक घातक रोग नहीं है. अगर समय पर दवा का छिड़काव कर दिया जाए, तो इस पर काबू पाया जा सकता है.

कृषि विशेषज्ञ ने कहा कि इस रोग की रोकथाम के लिए 500 मिलीलीटर एंडोसल्फान 35 ईसी, 400 मिलीलटर मैलाथियान 50 ईसी या फिर कंफीडोर का प्रयोग 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए. उन्होंने कहा कि फसलों में दवा का छिड़काव तब ही करें, जब 100 बालियों में से 12 बालियों पर इन कीट प्रभाव हो अथवा पौधे के पत्ते पर इस रोग के कम से कम 10 कीट हो. डॉ. ने कहा कि अगर कीटों की संख्या इनसे कम हो तो विभाग दवा के छिड़काव की सिफारिश नहीं करता.

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