किसानों के लिए मुसीबत नहीं बनेगी पराली, गेहूं और धान की पराली से बनेगा बायो थर्मोकोल, कृषि वैज्ञानिकों ने निकाला सस्ता समाधान
बायो-थर्मोकोल एक प्रकार का थर्मोकोल है जो पराली से बनाया जाता है। यह थर्मोकोल की तरह हल्का होता है,
किसानों के लिए मुसीबत नहीं बनेगी पराली, गेहूं और धान की पराली से बनेगा बायो थर्मोकोल, कृषि वैज्ञानिकों ने निकाला सस्ता समाधान
भारत में पराली की समस्या एक बड़ी चुनौती बन चुकी है, खासकर उत्तर भारत के क्षेत्रों में। पराली की जलाने से पर्यावरण को किसी नुकसान का सामना करना पड़ता है, और यह एक स्थायी समाधान की आवश्यकता है। इस समस्या का समाधान पाकिस्तान और बांग्लादेश में बायो-थर्मोकोल के उपयोग के माध्यम से किया जा रहा है, और अब यह समाधान भारत में भी उपलब्ध है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के लुधियाना स्थित केंद्रीय कटाई उपरांत अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों ने पराली से बायो थर्मोकोल बनाने में सफलता हासिल की है. इस तकनीक के हस्तांतरण के लिए अब बाकायदा एक औद्योगिक इकाई से एमओयू भी हो चुका हैं.
सबसे ज्यादा कहां होती है पराली
सरकार का दावा है कि अकेले पंजाब में 7.5 मिलियन एकड़ क्षेत्रफल पर धान की फसल उगाई जाती है, जिससे हर साल 22 मिलियन टन पराली पैदा होती है. सरकार का दावा है कि 60 फ़ीसदी पराली यानी 12 मिलियन टन पराली को खेतों में ही नष्ट करने के प्रयास किए जा रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक पंजाब में हर साल 10 मिलियन टन पराली जला दी जाती है, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान होता है.
बायो-थर्मोकोल क्या है?
बायो-थर्मोकोल एक प्रकार का थर्मोकोल है जो पराली से बनाया जाता है। यह थर्मोकोल की तरह हल्का होता है, लेकिन यह पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल होता है, यानी कि यह प्राकृतिक तरीके से नष्ट हो सकता है। बायो-थर्मोकोल का उपयोग पैकेजिंग, रूफ सीलिंग, और भवन निर्माण में किया जा सकता है।
इसका निर्माण कैसे होता है?
बायो-थर्मोकोल तैयार करने में पराली का उपयोग किया जाता है। पराली को छोटे टुकड़ों में काटकर उसका भूसा तैयार किया जाता है। उसके बाद, उसे जीवाणु रहित करके स्पॉन नामक पदार्थ मिलाया जाता है, जो अनाज से बनता है। स्पॉन के पनपने से पराली का रंग सफेद हो जाता है और यह बायो-थर्मोकोल को अच्छी तरह से चिपकने में मदद करता है। इसके बाद, इसे सांचे में डालकर किसी भी आकार में दिया जा सकता है।
फायदा
इसका उपयोग करने से पराली की जलाने से पर्यावरण को किसी नुकसान का सामना नहीं करना पड़ता है। यह पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल होता है और प्राकृतिक तरीके से नष्ट होता है।