देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में सांसनों को उठाना होगा प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने का मुद्दा

पराली जलाने से होने वाले वाले धुएं पल समस्या की समस्या पूरे देश के लिए बड़ा संकट है, किसानो पर आरोप लगता है कि उनके द्वारा धान की फसल मुद्दा के अवशेषों को जलाने से प्रदूषण बढ़ता है।

देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में सांसनों को उठाना होगा प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने का मुद्दा
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राज्यों की सरकारों के द्वारा अवशेषों को न जलाने के लिए प्रोत्साहन राशि की घोषणा भी की जाती है, लेकिन फिर भी यह समस्या इसी प्र कार बनी हुई है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए भारत सरकार ने सन 2018 में किसानों के लिए 1152 करोड रुपये की स्कीम की घोषणा की थी, जिसके अंतर्गत किसानों को फसल अवशेषों का प्रबंधन करने के लिए 80% तक कृषि उपकरणों पर अनुदान देने का प्रविधान किया गया था।

फिर भी ये सब नाकाफी सावित हो रहे हैं। अगर गुजरात के राज्यपाल एवं गुरुकुल कुरुक्षेत्र के संरक्षक आचार्य देवव्रत के द्वारा दिखाई गई प्राकृतिक खेती की राह को यदि देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में सांसद मजबूती के साथ पेश करें तो लोगों का स्वास्थ्य तो सुधरेगा ही, साथ ही मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी और किसानों की आय में बढ़ोतरी हो सकेगी। पेश है हरियाणा राज्य ब्यूरो प्रमुख अनुराग अग्रवाल की ये रिपोर्ट...।

अवशेष जलाना नहीं समस्या का समाधान

जिन कृषि उपकरणों पर अनुदान दिया जाता है, उनमें से अधिकतर ऐसे हैं, जो इन अवशेषों को धान की कटाई के बाद खेत में ही मिला देते हैं। कृषि वैज्ञानिक भी इसी बात पर जोर देते हैं कि फसल अवशेष मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए अति आवश्यक है, इसलिए उन्हें खेत से बाहर ले जाने की बजाय खेत की मिट्टी में ही मिला देना चाहिए, ताकि मिट्टी का जैविक कार्बन बढ़ने के साथ-साथ इसके भौतिक व जैविक स्वास्थ्य में भी लाभ होता रहे।

भूमि में बढ़े सूक्ष्म जीवाणुओं की मात्रा

गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत हालांकि वैज्ञानिकों की इस वात से सहमत है, लेकिन वे इस समस्या का एक बेहतर उपाय प्रस्तुत करते है। जब यह फसल अवशेष (औसतन दो टन प्रति एकड़) जमीन में मिलाए जाते है तो वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि इससे भी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे ग्लोवल वार्मिंग बढ़ती है। भूमि में सूक्ष्म जीवाणु व केंचुओं की संख्या को इतना बढ़ाया जाए कि यह अवशेष उनके भोजन के रूप में प्रयोग हो जाएं। इससे पौधे की कीट व बीमारियों से रक्षा होगी।

रासायनिक खेती नहीं बढ़ने देती सूक्ष्म जीव

यह केवल प्राकृतिक खेती से ही संभव है, क्योंकि रासायनिक खेती इन सूक्ष्म जीवाणुओं व केंचुओं की संख्या को बढ़ने नहीं देती है, जबकि प्राकृतिक खेती में यह जीव ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने वाली गैसों (कार्बन डाइआक्साइड, मिथेन और नाइट्रस आक्साइड) के अंदर विद्यमान कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन और नाइट्रोजन को प्रोटीन मास के तौर पर अपने शरीर में संचित कर लेते हैं और इन्हें पौधे की जड़ों के आसपास के वातावरण में ही बायोजियोकेमिकल साइकिल का हिस्सा बनकर इनको वहीं पर घुमा देते हैं। यह चार तत्व गैस बनकर वातावरण में नहीं जा पाते हैं। इस प्रक्रिया में भूमि के कार्बन क्रेडिट में इजाफा होता है।

ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण की जरूरत

फसल अवशेषों की खेत में गलने की प्रक्रिया अर्थात डीकंपोजिशन प्रोसेस। जब इन फसल अवशेषों को खेत में मिलाया जाता है तो यह अवशेष दो अवस्थाओं से गुजरकर पूरी तरह से गल पाते हैं। पहली अवस्था में इन अवशेषों से आर्गेनिक एसिड जैसे एसिटिक एसिड, ब्यूटीरिक एसिड, कार्बनिक एसिड, लैक्टिक एसिड आदि बनते हैं। जब खेत में यह एसिड बढ़ते हैं तो मिट्टी की पीएच, रेडाक्स पोटेंशियल व नाइट्रेट रिडक्टेज एक्टिविटी जैसे कारक प्रभावित होते हैं, जिससे गलाने वाले वैक्टीरिया अधिक मात्रा में मर जाते है और भूमि में कम मात्रा में नाइटोजन का फिक्सेशन होता है ऐसा होने से डी कंपोजिशन की दूसरी अवस्था में वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ जाता है।

मैं स्वयं कुरुक्षेत्र स्थित गुरुकुल के करीव ढाई सौ एकड़ कृषि फार्म पर प्राकृतिक खेती करता हूं। मेरे फार्म हाउस पर किसी न किसी समय देश के विभिन्न हिस्सों से किसान, वैज्ञानिक और नीति निर्धारक राजनीतिक लोग आते रहते हैं। मैं उन्हें हमेशा यही कहता हूं कि वे देश के किसानों को प्राकृतिक खेती की तरफ मोड़ें तथा फसल अवशेषों का प्राकृतिक प्रबंधन करें। नये चुनकर जाने वाले सांसदों से भी मेरा यही अनुरोध है कि वे किसानों को आधुनिक खेती के र प्राकृतिक खेती से जोड़े। आवार्य देवात् नाम पर राज्यपाल गुजरात एवं संरक्षक गुरुकुल कुरुक्षेत्र

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