मॉनसून की बारिश के बाद नरमा कपास में लगते हैं ये रोग, जानिए क्या है इसका समाधान

मॉनसून की बारिश के बाद नरमा कपास में लगते हैं ये रोग, जानिए क्या है इसका समाधान
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रमा कपास की फसल में आई हरा तेला रोग.

नरमा कपास की फसल (Cotton crop) में मॉनसून की बारिश (Monsoon Rain) के बाद हरा तेला, पैराविल्ट (उखेड़ा) व जड़ गलन रोग की समस्या देखने को मिल रही है. ऐसे में किसानों को घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेकर फसल में फैली बीमारी के समाधान की आवश्यकता है. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (Haryana Agricultural University) के प्रो. ने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक लगातार कपास उत्पादित क्षेत्रों में दौरा कर फसलों का जायजा ले रहे हैं. फसल में आने वाली समस्याओं की निगरानी करते हुए किसानों की समस्याओं का समाधान कर रहे हैं.

प्रो. कांबोज ने बताया कि इन दिनों कपास की फसल में हरा तेला का प्रकोप दिख रहा है. इससे पौधों की पतियां किनारों से पीली होकर नीचे की तरफ मुड़न लगती हैं. बाद में पत्तियों पर जंग लगने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं. इसकी रोकथाम के लिए किसानों को 40 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड (कांफीडोर) 200 एसएल या 40 ग्राम थायामिथॉक्साम (एकतारा) 25 डब्लूजी को 150-175 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ में छिड़काव करें.

जड़ गलन रोग का क्या है समाधान

जड़ गलन रोग खेत में कहीं-कहीं दिखाई देता है. इसमें शुरुआती दौर में पौधे की ऊपरी पत्तियां मुरझा जाती हैं और 24 घंटे के अंदर ही पौधा पूर्ण रूप से मुरझा जाता है. रोग ग्रस्त पौधों की जड़ें गली हुई लगती हैं और छाल उतरने लगती है. ऐसे में प्रभावित पौधे के साथ स्वस्थ पौधे को 0.2. प्रतिशत बाविस्टिन के घोल से उपचारित करें. साथ ही 100 से 200 मिलीलीटर घोल प्रति पौधा जड़ों में डालें.

सूखे के बाद ज्यादा बारिश होने पर क्या होता है?

पैराविल्ट यानी सूखा रोग या उखेड़ा रोग का प्रभाव सबसे ज्यादा रेतीले इलाकों में देखने को मिल रहा है. जहां लंबे समय तक सूखा रहने के पश्चात सिंचाई (Irrigation) की जाती है या फिर एक साथ भारी बारिश हो जाती है. इसमें पौधे अचानक मुरझा जाते हैं और तेजी से सूखने लगते हैं, लेकिन पौधों की जड़ें सामान्य रहती हैं. इसलिए इस समस्या से निजात पाने के लिए किसान (Farmer) अपने खेत की लगातार निगरानी करते रहें. समस्या होने पर 48 घंटों के अंदर कोबाल्ट क्लोराइड 2 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें.

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