Wheat News : गेहूं की बुवाई के 45 दिन के अंतराल कभी ना करें ऐसी गलती, अन्यथा घट जाएगा गेंहू उत्पादन

Wheat News : गेहूं की बुवाई के 45 दिन के अंतराल कभी ना करें ऐसी गलती, अन्यथा घट जाएगा गेंहू उत्पादन
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Wheat News : गेहूं की बुवाई के 45 दिन के अंतराल कभी ना करें ऐसी गलती, अन्यथा घट जाएगा गेंहू उत्पादन

Wheat News : गेहूं की उपज बढ़ाने के लिए कृषि मंत्रालय की जरूरी सलाह गेहूं की उपज बढ़ाने के लिए किसानों को कृषि मंत्रालय की जारी की गई एडवाइजरी का पालन करना चाहिए। एडवाइजरी में खेतों का दौरा, खरपतवार नियंत्रण, उर्वरक प्रयोग, सिंचाई, पीला रतुआ रोग से बचाव और मौसम का ध्यान रखने के बारे में बताया गया है। इससे गेहूं की अच्छी उपज होगी और कीमतों में गिरावट आ सकती है।

खेतों का दौरा

गेहूं की अच्छी उपज के लिए किसानों को अपने खेतों का नियमित रूप से दौरा करना चाहिए। इससे वे अपनी फसल की स्थिति, रोग, कीट, खरपतवार और अन्य समस्याओं का पता लगा सकते हैं। यदि खेत में खरपतवार दिखाई दें तो उन्हें हटाकर बाहर फेंक देना चाहिए। खरपतवार फसल के पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं और उसकी उपज को कम करते हैं।

उर्वरक प्रयोग

गेहूं की बुआई के 40-45 दिन बाद खेत में नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग बंद कर देना चाहिए। इससे फसल की जड़ों का विकास अच्छा होता है और फसल को पाले से बचाया जा सकता है। गेहूं की सिंचाई से पहले मिट्टी में यूरिया डालने की भी सिफारिश करता है। यूरिया फसल को नाइट्रोजन प्रदान करता है जो फसल के विकास के लिए आवश्यक है।

सिंचाई

गेहूं की सिंचाई का भी ध्यान रखना चाहिए। गेहूं को नियमित अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। अधिक या कम सिंचाई से फसल को नुकसान हो सकता है। इस बीच मौसम विभाग ने पूर्वोत्तर और मध्य राज्यों में बारिश का अनुमान जताया है। उन्हें डर है कि आने वाले हफ्तों में तापमान और गिर सकता है। इस कारण किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी फसलों को पाले से बचाने के लिए हल्की सिंचाई करें।

पीला रतुआ रोग से बचाव

गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग एक खतरनाक रोग है जो फसल को बर्बाद कर सकता है। इस रोग से बचाव के लिए कृषि मंत्रालय ने किसानों को सलाह दी है। उसने कहा है कि किसानों को नियमित रूप से अपनी फसल का निरीक्षण करना चाहिए। अगर गेहूं के खेत में पीला रतुआ रोग के लक्षण दिखाई देते हैं, तो संक्रमित पौधों को तुरंत खेत से हटा देना चाहिए, ताकि यह अन्य पौधों को संक्रमित न करें। इस रोग के लक्षण में पौधों के पत्तों का पीला पड़ना, फूलों का गिरना, दानों का न बनना और पौधों का मर जाना शामिल है।

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