पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में ज्यादा पैदावार देने वाली गेहूं कौन सा है? सबसे कम समय मे तैयार होने वाली गेहूं की फसल

धरती के तापमान में बदलाव के साथ, गेहूं के उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ रहा है। इस परिस्थिति में, वैज्ञानिकों ने हीट प्रतिरोधी गेहूं की वैराइटियों का विकास किया है ताकि उन्नत उत्पादन के साथ-साथ तापमान के परिवर्तन का भी सही तरीके से सामना किया जा सके।

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में ज्यादा पैदावार देने वाली गेहूं कौन सा है? सबसे कम समय मे तैयार होने वाली गेहूं की फसल
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भारतीय कृषि विज्ञानियों ने गेहूं की तीन नई वैराइटियों का विकास किया है, जो कि न केवल उत्तम उत्पादन प्रदान करेंगी, बल्कि बीमारियों की प्रतिरोधी भी हैं। यह उन्नत गेहूं की नई वाणिज्यिक उम्मीद है जो किसानों को बेहतर उपज और मुनाफा प्रदान कर सकती है।

जलवायु परिवर्तन और गेहूं की प्रतिक्रिया

धरती के तापमान में बदलाव के साथ, गेहूं के उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ रहा है। इस परिस्थिति में, वैज्ञानिकों ने हीट प्रतिरोधी गेहूं की वैराइटियों का विकास किया है ताकि उन्नत उत्पादन के साथ-साथ तापमान के परिवर्तन का भी सही तरीके से सामना किया जा सके।

तीन उन्नत गेहूं वैराइटियों की खासियतें

निम्नलिखित तीन उन्नत गेहूं वैराइटियों के बारे में जानकारी दी गई है:

गेहूं वैराइटियों की खासियतें

वैराइटियों की विशेषताएं

DBW-371 (करण वृंदा): यह गेहूं की वैराइटी सिंचाई वाले क्षेत्रों में अगेती बुआई के लिए विकसित की गई है। इसका उत्पादन क्षमता 87.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और औसत उपज 75.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसके पौधों की ऊँचाई 100 सेमी है और पकने की अवधि 150 दिन होती है। यह वैराइटी प्रोटीन कंटेंट में 12.2%, जिंक में 39.9 पीपीएम और लौह तत्व में 44.9 पीपीएम का होता है।

DBW-370 (करण वैदेही): इस वैराइटी का उत्पादन क्षमता 86.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और औसत उपज 74.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊँचाई 99 सेमी है और पकने की अवधि 151 दिन होती है। इस वैराइटी में प्रोटीन कंटेंट 12.0%, जिंक में 37.8 पीपीएम और लौह तत्व में 37.9 पीपीएम होता है।

DBW-372 (करण वरुणा): इस वैराइटी का उत्पादन क्षमता 84.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और औसत उपज 75.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊँचाई 96 सेमी है और पकने की अवधि 151 दिन होती है। इस वैराइटी में प्रोटीन कंटेंट 12.2%, जिंक में 40.8 पीपीएम और लौह तत्व में 37.7 पीपीएम होता है।

किसानों के लिए उपयोगिता

ये वैराइटियाँ सभी प्रमुख रोगजनक प्रकारों के खिलाफ प्रतिरोधी हैं, और उन्नत उत्पादन के साथ साथ तापमान परिवर्तन के प्रभाव से भी बचाती हैं। इनमें से DBW-370 और DBW-372 किसानों के लिए करनाल बंट रोग प्रति अधिक प्रतिरोधी प्रदान करती हैं।

क्षेत्रीय उपयोग

ये वैराइटियाँ उत्तरी गंगा-सिंधु क्षेत्र में, जैसे कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कठुआ, हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला और पोंटा घाटी, तराई क्षेत्र में उपयोगी हैं।

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