नरमा-कपास की फसल में क्यों आता है उखेड़ा व साट मारने वाला रोग?

नरमा-कपास में उखेड़ा रोग से छुटकारा पाने के उपाय

नरमा-कपास की फसल में क्यों आता है उखेड़ा व साट मारने वाला रोग?
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नरमा-कपास की फसल में क्यों आता है उखेड़ा व साट मारने वाला रोग?

नरमा-कपास में उखेड़ा रोग से छुटकारा पाने के उपाय

खेत खजाना : खेती किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रावधानों में से एक है, लेकिन कई बार फसल को पैदा करने के बाद अचानक उखेड़ा (सूखा रोग, शार्ट मारना) रोग से नुकसान हो जाता है। इससे किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। नरमा (भिंडी) और कपास (सफेद बूंदी) की फसलों में उखेड़ा रोग से छुटकारा पाने के लिए कुछ उपाय हैं। इस लेख में, हम उखेड़ा रोग के कारणों के बारे में चर्चा करेंगे और किसानों को इस समस्या से निपटने के उपाय बताएंगे।

उखेड़ा रोग के कारण

उखेड़ा रोग के मुख्य कारणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

जड़ों की गहराई कम होना: उखेड़ा रोग हल्की जमीनों में बार बार एक ही फसल की बुआई करने से हो सकता है। ऐसा करने से जमीन में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिससे फसल मजबूत नहीं होती है और रोगों के प्रति प्रतिरोधशीलता कम हो जाती है।

फंगस और अन्य प्रभावक जीवों का प्रकोप: फसल में उखेड़ा रोग की मुख्य वजह फंगसों की प्रभावित होने की होती है। इसके अलावा, अगस्त और सितंबर महीनों में ज्यादातर वर्षा के कारण पौधों पर निम्न स्तरों में पानी की उपलब्धता होती है, जिससे सूखा रोग या उखेड़ा रोग हो सकता है।

उचित खुराक की कमी: कपास की फसल में टिंडे लगाने के समय, पौधों को अधिक खुराक की जरूरत होती है। लेकिन, जमीन में पोषक तत्वों की कमी होने के कारण, उचित खुराक नहीं मिल पाती है, जिससे पौधे के विकास पर असर पड़ता है और फसल नष्ट हो सकती है।

उखेड़ा रोग से छुटकारा पाने के उपाय

नरमा और कपास की फसलों में उखेड़ा रोग से निपटने के लिए निम्नलिखित उपायों का पालन करें:

उचित बीज संकल्प: उचित गुणवत्ता और प्रतिरक्षा क्षमता वाले बीजों का उपयोग करें। रोग प्रतिरोधी प्रजातियों के साथ विकसित बीज चुनने के लिए कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें।

जमीन की गहराई का ध्यान रखें: फसल बुआई करते समय, जमीन की गहराई का ध्यान रखें और हल्की जमीनों में बार बार एक ही फसल न बोएं। यह जमीन में पोषक तत्वों की कमी को कम करने में मदद करेगा।

फंगस से बचाव: फसल पर फंगसों के प्रकोप से बचने के लिए नियमित फंगीसाइड छिड़काव करें। इसके लिए, कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें और उचित फंगीसाइड के बारे में जानकारी प्राप्त करें।

उचित खुराक प्रबंधन: टिंडे लगाने के दौरान उचित खुराक प्रबंधन करें। यहां डी ए पी (डिकल्केसियम फॉस्फेट) और मिकोराजा (माइक्रोन्यूट्रिएंट्स) के उपयोग से पोधों की जड़ें मजबूत होती हैं।

समय पर पानी दें: बिजाई के दौरान, फसल को समय पर पानी दें और अधिक पानी से बचें। अधिक पानी फसल में फंगसों के प्रकोप को बढ़ा सकता है।

इन उपायों का पालन करके किसान साथी उखेड़ा रोग से निपट सकते हैं और अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं। साथ ही, विशेषज्ञों से सलाह लेना और स्थानीय कृषि विभाग के निरीक्षण का पालन करना भी महत्वपूर्ण है।

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