गेहूं की फसल में जिंक की कमी से हो सकते है ये नुकसान, ऐसे करें उपचार
गेहूं रबी की मुख्य फसल होने के साथ-साथ एक बहुत महत्वपूर्ण अनाज है। इसकी बुआई पूरी हो चुकी है और अब इसकी कटाई मार्च के अंत से अप्रैल तक शुरू हो जाएगी।
गेहूं रबी की मुख्य फसल होने के साथ-साथ एक बहुत महत्वपूर्ण अनाज है। इसकी बुआई पूरी हो चुकी है और अब इसकी कटाई मार्च के अंत से अप्रैल तक शुरू हो जाएगी। इस वक्त गेहूं की फसल के रख-रखाव का महत्वपूर्ण समय है, खासकर जिंक की मात्रा, रोगों के निदान, और खरपतवार नियंत्रण को लेकर। जिंक एक सूक्ष्म पोषक तत्व है जो नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे प्रमुख उर्वरकों के रूप में फसलों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
जिंक की कमी होने पर गेहूं की पत्तियों पर महीन रेखाएं या झुलसे हुए रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। यह सूक्ष्म पोषक तत्व पौधों के लिए बहुत आवश्यक होता है और इसकी कमी से फसल में कमी आती है। जिंक की कमी के लक्षण बुआई के 30 दिन बाद दिखाई देते हैं।
जिंक सिर्फ गेहूं ही नहीं बल्कि सभी फसलों के लिए एक प्रमुख सूक्ष्म पोषक तत्व है। इसकी कमी से फसल में फूल कम आना, पौधों की वृद्धि में कमी, पत्तियों पर हल्के पीले धब्बे, निचली पत्तियों पर भूरे धब्बे जैसी समस्याएं हो जाती हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, 200 लीटर पानी में एक किलोग्राम जिंक सल्फेट (21%) और आधा किलोग्राम चूना (बुझा हुआ) मिलाकर मलमल के कपड़े से छान लें और प्रति एकड़ छिड़काव करें।
जिंक की कमी से न केवल उत्पादन में कमी होती है बल्कि गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। इसलिए किसानों को संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करके गेहूं की फसल की देखभाल करनी चाहिए ताकि उन्हें सही मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व मिल सकें और उत्पादन में वृद्धि हो।