गधी के दूध को मिलने वाली है सरकारी मान्यता? 5500 रुपए लीटर बिकने वाले दूध से किसानों को की बढ़ेगी आय, सरकार दे रही किसानों को प्रोत्साहन

गधी के दूध को मिलने वाली है सरकारी मान्यता? 5500 रुपए लीटर बिकने वाले दूध से किसानों को की बढ़ेगी आय, सरकार दे रही किसानों को प्रोत्साहन
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Khetkhajana

गधी के दूध को मिलने वाली है सरकारी मान्यता? 5500 रुपए लीटर बिकने वाले दूध से किसानों को की बढ़ेगी आय, सरकार दे रही किसानों को प्रोत्साहन

बच्चों के लिए मां के दूध के विकल्प के तौर पर दूसरा दूध देना हो तो गाय-भैंस से भी बेहतर गधी का दूध होता है। क्योंकि इसमें वसा की मात्रा काफी कम होती है। जिन लोगों को दूध से एलर्जी होती. है, वे भी इसे पी सकते हैं। इसीलिए गधी के दूध को खाद्य पदार्थ के तौर पर मान्यता दिलाने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसआई) में आवेदन किया गया है। मान्यता मिलती है तो इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो जाएगा।

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनुराधा बताती हैं कि उपयोगिता समाप्त होने के कारण अब देश भर में गधों की संख्या 1.25 लाख से भी कम बची है। हरियाणा में तो इनकी संख्या 900 से भी कम है। दुनिया के विभिन्न देशों में गधी का दूध सौंदर्य प्रसाधन बनाने के काम आता है। हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनुराधा भारद्वाज गधों की प्रजाति को बचाने के उपाय पर शोध कर रही हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र में हम पिछले कुछ समय से गधी के दूध में पाए  जाने वाले पोषक तत्वों पर शोध कर रहे थे। शोध में यह काफी गुणकारी मिला।

अधिकतम डेढ़ लीटर तक दूध देती है गधी

गधी अपने बच्चे के लिए भरपूर दूध उत्पादित करती है। एक बार में अधिकतम एक से डेढ़ लीटर तक ही दूध दे सकती है। इसलिए गधी का व्यावसायिक स्तर पर पालन कम है। दक्षिण भारत में कुछ जगहों पर इसका पालन हो रहा है। डॉ. अनुराधा ने बताया कि देश भर के 50 लोग गधों के पालन का प्रशिक्षण ले चुके हैं।

पिछले दिनों मेनका गांधी ने भी की थी तारीफ

पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु संरक्षण के लिए काम करने वाली मेनका गांधी ने पिछले दिनों गधी के दूध की उपयोगिता को देखते हुए इसके पालन पर जोर दिया था। पूर्व केंद्रीय का एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था कि गधी के दूध से बना साबुन 500 रुपये में बिक रहा है। इसलिए गधी का पालन रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराएगा।

मां व गाय के दूध से भी कम होती है गधी में वसा

गधों की प्रजाति को बचाने के लिए उसकी उपयोगिता खोजना जरूरी है। गधी के दूध की विशेषता को देखते हुए इसका व्यावसायिक उत्पादन एक बेहतर विकल्प है। इसके दूध का उपयोग सौंदर्य के सामान के अलावा दवा बनाने में भी होता है। हमारा संस्थान इस दिशा में शोध कार्य कर रहा है। डॉ. तरुन कुमार भट्टाचार्य, निदेशक, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार

पर हमने एफएसएसआई में इसे खाद्य पदार्थों की सूची में शामिल करने का आवेदन किया है।

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