दलहनी फसलों की सुरक्षा: इन खास तरीकों से करें रोग प्रबंधन और उपचार

Protection of pulse crops दलहनी फसलों की सुरक्षा: रोग प्रबंधन और उपचार

दलहनी फसलों की सुरक्षा: इन खास तरीकों से करें रोग प्रबंधन और उपचार
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दलहनी फसलों की देखभाल

दलहनी फसलें जैसे चना, मटर, मसूर, गेहूं, और मिर्च भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन फसलों की उचित देखभाल और रोग प्रबंधन से किसानों को अच्छी पैदावार प्राप्त हो सकती है। वर्तमान मौसमी परिवर्तनों के चलते इन फसलों की देखभाल और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

हरदा रोग के लक्षण और बचाव

हरदा रोग चना, मटर, मसूर और गेहूं में पाया जाने वाला एक सामान्य रोग है। इसके लक्षणों में पौधों की पत्तियों, टहनियों और फलियों पर गोलाकार सफेद और भूरे रंग के फोफले शामिल हैं। इस रोग से बचाव के लिए बुवाई के समय रोग रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए। रोग के लक्षण दिखने पर प्रोपिकोनाजोल 500 मिली का पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए।

स्टेमफिलियम ब्लाईट रोग और उसका प्रबंधन

स्टेमफिलियम ब्लाईट रोग चना और मसूर में लगने वाला एक प्रमुख रोग है। इस रोग के लक्षणों में पौधों की पत्तियों पर छोटे भूरे और काले रंग के धब्बे शामिल हैं। इस रोग से बचाव के लिए पौधों पर लक्षण दिखते ही उन्हें उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। मैंकोजेब 2 किलो और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 किलो का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से रोग से बचाव हो सकता है।

उपचार के अन्य उपाय

दलहनी फसलों की देखभाल के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

- बुआई से पूर्व फसलों को ट्राइकोडर्मा और राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना¹.

- फसलों पर लगने वाले कीटों और रोगों पर नजर रखना¹.

- बीजों के उपचार के लिए राइजोबियम कल्चर का प्रयोग करना².

इन उपायों को अपनाकर किसान दलहनी फसलों की उत्पादकता बढ़ा सकते हैं और रोगों से बचाव कर सकते हैं। इससे न केवल फसलों की सुरक्षा होगी बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि होगी।

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