तुंबा का अचार बिक रहा है ₹400 प्रति किलो, खेतों की मेड़ों पर बेकार पड़ी तुंबे की बेल की खेती कर पाएं डबल मुनाफा, जानिए कैसे करें खेती

तुंबा का अचार बिक रहा है ₹400 प्रति किलो, खेतों की मेड़ों पर बेकार पड़ी तुंबे की बेल की खेती कर पाएं डबल मुनाफा, जानिए कैसे करें खेती
X

By. Khetkhajana.com

तुंबा का अचार बिक रहा है ₹400 प्रति किलो, खेतों की मेड़ों पर बेकार पड़ी तुंबे की बेल की खेती कर पाएं डबल मुनाफा, जानिए कैसे करें खेती

बहुत ही कम बारिश होने की वजह से किसानों के लिए रेगिस्तान में जहां एक ओर फसल उत्पादन करना बहुत कठिन कार्य है, वहीं दूसरी तरफ खरीफ फसल में खरपतवार के नाम से जाने वाला तुम्बा आजकल आय का अच्छा जरिया बन रहा वे क्षेत्रों में पशुपालन ही अधिकतर किसानों के जीवनयापन करने का एकमात्र साधन है। हरे सूखे चारे के अभाव की वजह से पशुपालकों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। रेगिस्तान में तुम्बा आसानी से पनपने की वजह से किसानों के लिए एक अतिरिक्त आय का साधन बन सकता है।

तुम्बा का छिलका पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ देसी एवं आयुर्वेदिक औषधियों में काम आता है। इसके अलावा गाय, भेड़, बकरी व ऊंट आदि में होने वाले रोगों के उपचार में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तियां बकरियों के पौष्टिक चारे के रूप में काम आती हैं तथा उनका दूध बढ़ाती हैं। तुम्बा, पशुओं में थनों पर सूजन को कम करने वाला, कृमि को निकालने में मददगार, पशु की पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला और रक्त को शुद्ध करने का कार्य करता है। पशु आहार के साथ एक तुम्बा पशु को रोज खिलाने से पशु स्वस्थ एवं रोगों से दूर रहता है।

रेगिस्तान में किसान तुम्बा, को खरपतवार के तौर पर देखा करते थे। आजकल इसकी औषधीय गुणों से भरपूर होने की वजह अच्छे दामों पर बिक्री हो जाती है। तुम्बा का अचार, कैंडी, मुरब्बा और चूर्ण बनाकर घरेलू उपयोग के साथ-साथ बाजार में बेचकर मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। शुष्क और अतिशुष्क क्षेत्र में तुम्बा जैसी फसल को अपनाया जाना आवश्यक हो गया है, जो बहुत ही कम वर्षा व व्यय में संभव है। यह खरीफ के मौसम की फसल होने के साथ ही भूसंरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

पेट साफ करने, मानसिक तनाव, पीलिया, मूत्र रोगों में यह लाभदायक है। तुम्बा को इंद्रायण, सिट्रलस कॉलोसिंथस एवं बिटर एपल इत्यादि नामों से जाना जाता है। इसके फल के गूदे को सुखाकर औषधि के काम में लाते हैं।

तुम्बे का अचार व कैंडी

सर्वप्रथम तुम्बे का छिलका उतारकर इसे चूने के पानी में सात से आठ दिनों तक भिगोकर रखा जाता है, ताकि यह मीठा हो जाए। एक कि.ग्रा. चूना प्रति चार कि.ग्रा. तुम्बे के लिए पर्याप्त होता है। इस चूने को उपयोग में लाने से पूर्व दस लीटर पानी में डालकर रातभर रखने के पश्चात चूने के पानी को निथारकर कपड़े से छानकर इसको अलग करके इसमें तुम्बे को सात से आठ दिनों तक के लिए भिगो दिया जाता है। इसके बाद इसको साफ पानी से धोया जाता है। अब इसको धूप में सुखाया जाता है, ताकि इसकी नमी पूरी तरह से खत्म हो सके।

इसके बाद में सूखे हुए तुम्बे में हल्दी, राई, मेथी ,सौंफ, जीरा, हींग, सरसों का तेल डाल दिया जाता है। सुखाने के बाद की प्रक्रिया ठीक उसी तरह रहेगी जैसे कि साधारण अचार बनाने की होती है। यदि इस सूखे हुए तुम्बे को चीनी की चाशनी में उबालकर रख दिया जाए, तो यह कैंडी बन जाती है। पौष्टिक एवं स्वादिष्ट तुम्बे का अचार बाजार में 400 रुपये कि.ग्रा. तक बिकता है। यह स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है।

खेती कैसे और कब करें

पहली वर्षा के बाद जून-जुलाई का समय इसकी बुआई के लिए उपयुक्त रहता है। सामान्यतः 150-300 मि.मी. वर्षा वाले क्षेत्रों में इस फसल का अच्छा उत्पादन होता है। इसके बीजों की बुआई 3 मीटर दूरी पर व पंक्तियों में 1-1 मीटर पर की जाती है। एक स्थान पर दो उपचारित बीज 2 सें.मी. गहराई तक गाड़ना उचित होता है। एक एकड़ में 250 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। इसके पौधे नर्सरी के रूप में उगाकर पौध के माध्यम से भी रोपण किए जाते हैं। इस प्रकार बीजों की आवश्यकता आधी रह जाती है। नवंबर-दिसंबर में फल पीले पड़ने पर तोड़ लिए जाते हैं अतः इसकी दो बार तुड़ाई करनी चाहिए। पहली तुड़ाई नवंबर के अंत में और दूसरी दिसंबर के अंत में की जानी चाहिए। फल सूखने पर बीज अलग कर लेते हैं। एक एकड़ में लगभग 2 क्विंटल बीज प्राप्त होते हैं और एक एकड़ में लगभग 3-3.5 क्विंटल फल प्राप्त होते हैं।

Tags:
Next Story
Share it