जानिए बीकानेर के मशहूर ब्रांड हल्दीराम की संघर्ष भरी कहानी, बाप, बेटे और पोते के बीच कंपटीशन से मिली कंपनी को ये कंडीशन

जानिए बीकानेर के मशहूर ब्रांड हल्दीराम की संघर्ष भरी कहानी, बाप, बेटे और पोते के बीच कंपटीशन से मिली कंपनी को ये कंडीशन
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जानिए बीकानेर के मशहूर ब्रांड हल्दीराम की संघर्ष भरी कहानी, कैसे मशहूर हुई यह भुजिया

जानिए बीकानेर के मशहूर ब्रांड हल्दीराम की संघर्ष भरी कहानी, बाप, बेटे और पोते के बीच कंपटीशन से मिली कंपनी को ये कंडीशन

पुरानी कहावत है कि आदमी के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर गुजरता है और हल्दीराम का संकल्प इसी कहावत को लागू कर लोगों का दिल जीतना है। कभी राजस्थान के बीकानेर में भुजिया बनाने से शुरू हुई हल्दीराम आज 80 से ज्यादा देशों में बिजनेस चला रही है। कंपनी की लोकप्रियता इतनी है कि एक हल्दीराम ने चार कंपनियों को जन्म दिया और चार में तीन कंपनियां आज 8000 करोड़ से भी ज्यादा का बिजनेस कर रही हैं। कंपनी के इतिहास से मालूम चलता है कि इसने उतार-चढ़ाव से ज्यादा बंटवारों का सामना किया है, इसके बावजूद स्नैक इंडस्ट्री में हल्दीराम का मार्केट शेयर 36 प्रतिशत से भी ज्यादा है। इस हफ्ते की ब्रांड सक्सेस स्टोरी में पढ़ते हैं हल्दीराम की कहानी....

बुआ की भुजिया से मिला हल्दीराम का आइडिया

पवित्रा कुमार की किताब 'भुजिया बैरन्स' के अनुसार बीकानेर के भीखाराम अग्रवाल ने हल्दीराम की नींव रखी। दरअसल उनके पोते का नाम गंगाबिशन अग्रवाल था, शुरू में भीखाराम बीकानेर के भुजिया बाजार में छोटे-मोटे काम करते थे। भीखाराम के पोते गंगाराम को प्यार से 'हल्दीराम' बुलाया जाता था। उन दिनों हल्दीराम की बुआ बिखी बाई अग्रवाल परिवार के लिए भुजिया बनाया करती थीं जिसका स्वाद ही कुछ अलग था। भीखाराम ने इसे मार्केट में बेचने का सोचा। जैसे ही यह भुजिया मार्केट में पहुंची तो इसकी ठीक-ठाक बिक्री होने लगी और परिवार के पास एक स्थायी आय आने लगी। इसके बाद गंगा राम (हल्दीराम) भी इस बिजनेस में जुड़े।

• हल्दीराम जब भुजिया के बिजनेस में आए तो उन्होंने बेसन की जगह मोठ दाल की भुजिया बेचना शुरू किया जिससे उनकी भुजिया यूनीक बन पाई।

बीकाजी समेत हल्दीराम के 4 ब्रांड

बीकानेर में गंगा किशन अग्रवाल ने हल्दीराम कंपनी शुरू की।1956 मे

कोलकाता में हल्दीराम & संस शुरू। अब इसका नाम 'प्रभुजी' है 1970 मे

शिव किशन अग्रवाल ने हल्दीराम नागपुर शुरू किया 1983 मे

नोहर लाल अग्रवाल ने हल्दीराम दिल्ली शुरू किया 1993 मे

हल्दीराम के पोते शिव रतन ने अलग कंपनी बीकाजी शुरू की।

1919 तक हल्दीराम पूरी तरह से भुजिया के बिजनेस में शामिल हो चुके थे। उन्होंने अपनी भुजिया का नाम डूंगर सेव रखा, जो बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंह के नाम से प्रेरित था। इस कदम से बिना एक रुपए खर्च किए महाराजा डूंगर सिंह हल्दीराम के पहले अघोषित 'ब्रांड एम्बेसडर' बन गए थे। इसके अलावा उन दिनों 1 किलो भुजिया का दाम 2 पैसा हुआ करता था जिसे हल्दीराम ने बढ़ाकर 5 पैसा कर दिया। बीकानेर के लोग इस भुजिया के लिए 2 पैसे के बजाय 5 पैसा देने लिए राजी हो गए थे क्योंकि महाराजा के जुड़ाव के कारण उन्हें हल्दीराम की भुजिया प्रीमियम लगने लगी थी। इसके बाद बीकानेर में हल्दीराम की भुजिया मशहूर हो गई थी।

• बीकानेर में लगातार सफलता हासिल करने के बाद 1937 में जाकर गंगा बिशन अग्रवाल ने हल्दीराम को कंपनी के तौर पर शुरू किया।

कोलकाता, नागपुर और दिल्ली में बंटी कंपनी

1955 में हल्दीराम ने कोलकाता में अपना बिजनेस 'हल्दीराम भुजियावाला' के नाम से शुरू किया। कंपनी को 10 वर्ष के भीतर ही सफलता मिल गई। इसी बीच बड़े बेटे सत्यनारायण अपने पिता और भाई से अलग हो गए और 'हल्दीराम एंड संस' नाम से अलग दुकान खोल ली। यानी कोलकाता में हल्दीराम परिवार एक-दूसरे का प्रतिद्वंदी बन चुका था। बीकानेर और कोलकाता में बिजनेस शुरू करने के बाद हल्दीराम के पोते और मूलचंद के बेटे शिव किशन ने नागपुर में फैमिली बिजनेस को बढ़ाने के बारे में सोचा, लेकिन समस्या यह आई कि बीकानेर और कोलकाता के मुकाबले नागपुर के लोगों को भुजिया उतनी पसंद नहीं थी।

• नागपुर में साउथ इंडियन डिशेज की डिमांड थी. तो हल्दीराम ने नागपुर में साउथ इंडियन डिशेज बेचना शुरू किया। इससे नागपुर में कंपनी सफल हुई।

दिल्ली में शुरू होने के 1 साल बाद ही दंगों का शिकार हुआ हल्दीराम

हल्दीराम के पोते शिव किशन ने अपने सबसे छोटे भाई मनोहरलाल के साथ मिलकर फरवरी 1983 में दिल्ली के चांदनी चौक में हल्दीराम की शुरूआत की। अब मनोहर लाल अग्रवाल ही इसका संचालन करते हैं। 1984 में दिल्ली में दंगे हुए थे। इसका खामियाजा हल्दीराम को भी चुकाना पड़ा। हल्दीराम के दिल्ली में शुरू होने के 1 साल बाद ही कंपनी को बड़ा झटका लगा। मनोहर लाल के घर के ऊपरी दो मंजिलों में हल्दीराम की फैक्ट्री मौजूद थी। दंगों में मनोहर का पूरा घर और फैक्ट्री जल गए थे। बाद में भाइयों की मदद से उन्होंने दोबारा अपना बिजनेस शुरू किया।

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