कम खर्चे और कम पानी में करना चाहते हैं धान की खेती, तो अपना लीजिए धान की ये किस्में
Khetkhajana
कम खर्चे और कम पानी में करना चाहते हैं धान की खेती, तो अपना लीजिए धान की ये किस्में
धान के खेतों में सिंचाई के दौरान पानी की खपत कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान केंद्र (आईआरआरआई) ने नई तकनीक खोजी है। इसे नाम दिया है एडब्ल्यूडी अर्थात अल्टरनेटिव बेटिंग एंड ड्राइंग यानी बार-बार गीला और सूखा करना।
फिलीपींस की इस तकनीक में खेत में लगे एक फीट के प्लास्टिक पाइप के जरिए नमी का पता लगाकर सिंचाई की जा सकती है। इससे सिंचाई में न केवल 30 प्रतिशत पानी बचेगा, वहीं मिथेन गैस का उत्सर्जन
भी 48% तक कम होगा। तकनीक हरियाणा, पंजाब व पश्चिमी यूपी में सबसे अधिक फायदेमंद है।
धान की खेती में रोपाई से सिंचाई तक अत्यधिक पानी की जरूरत होती है। रोपाई के बाद महीने भर तक किसान खेत में लगातार पानी जमा रखते हैं।
मिट्टी के स्तर से 15 सेमी नीचे तक पाइप को रखा जाना है ताकि पानी का स्तर पता चलता रहे।
इससे मिथेन गैस का उत्सर्जन अधिक होता है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। आईआरआरआई के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र वाराणसी के वैज्ञानिक डॉ. विपिन अहलावत बताते हैं कि इस तकनीक को देशभर में प्रचारित किया जा रहा है
फिलीपींस की तकनीक होगी कारगर
30 प्रतिशत तक पानी की बचत होगी, ट्यूबवेल भी नहीं लगाने पड़ेंगे पाइप में पानी जमा रहने से खेत की नमी भी बनी रहेगी
पानी सूख जाए तो केवल पांच सेंटीमीटर सिंचाई करें
डॉ. विपिन ने बताया कि धान के पौधों की जड़े जमीन में 15 सेंटीमीटर तक फैली होती हैं। इस वाटर ट्यूब का निचला तल भी खेत के तल से 15 सेंटीमीटर नीचे होता है। जब वाटर ट्यूब के निचले तल पर पानी सूख जाए तो किसान को खेत की सिंचाई करनी चाहिए। एक बार में 15 सेंटीमीटर तक पानी भरना चाहिए। रोपाई के दो सप्ताह बाद इस विधि से सिंचाई करनी चाहिए। फूल बनते वक्त विधि का प्रयोग बंद कर देना चाहिए।