आखिर कितना ताकतवर होता उपमुख्यमंत्री का पद, मंत्री से कैसे होता है अलग? जानिये सबकुछ

आखिर कितना ताकतवर होता उपमुख्यमंत्री का पद, मंत्री से कैसे होता है अलग? जानिये सबकुछ
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भारत के तीन राज्यों - राजस्थान, छत्तीसगढ़, और मध्यप्रदेश में नए मुख्यमंत्री के चेहरे सामने आ रहे हैं। इन तीनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने बहुमत प्राप्त किया है, और इस बार पार्टी ने नए नेतृत्व को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने का निर्णय लिया है। इन राज्यों में दो-दो उपमुख्यमंत्री भी चयनित हो चुके हैं। रोचक बात यह है कि भारत के संविधान में उपमुख्यमंत्री या उपप्रधानमंत्री के पद का कोई उल्लेख नहीं है, और इस पद की महत्वपूर्णता और उसकी शक्तियों पर सवाल उठता है।

राजस्थान में दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा, मध्यप्रदेश में राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा, और छत्तीसगढ़ में अरुण साव और विजय शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। दो उपमुख्यमंत्री को चयन करना एक अनूठी घटना है, लेकिन इससे यह सिद्ध होता है कि इन राज्यों में नेतृत्व और राजनीतिक संतुलन को मजबूती से बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है।

इन दिनों, यह दृष्टिकोण उठ रहा है कि उपमुख्यमंत्री का पद कितना महत्वपूर्ण है और इसकी वास्तविक शक्तियां क्या हैं। क्या यह पद मंत्रियों के समान है या यह एक नाममात्र पद है जिसमें उतनी ही शक्तियां हैं?

इन राज्यों में दो दो उपमुख्यमंत्री बनना एक दिवसीयता है। हालांकि, इसे संविधान में उपमुख्यमंत्री का पद नहीं मिलता है, इसके बावजूद इस पद की महत्वपूर्णता और समर्पण से दिखता है कि यह एक प्रमुख और आवश्यक पद है।

इस पद की ओर बढ़ते हुए राजनैतिक संबंधों के क्षेत्र में, यह अब उपप्रधानमंत्री के पद की तरह महत्वपूर्ण हो रहा है। संविधान के पूर्व लागू होने के बावजूद, उपमुख्यमंत्री का पद देश के राजनैतिक लंबे सफर में एक प्रमुख रूप से राजनैतिक संबंध बनाए रखने का साबित हो रहा है।

गति पकड़ते हुए, राजनैतिक संतुलन की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, उपमुख्यमंत्री पद देश के विभिन्न हिस्सों में एक एहतियाती और रणनीतिक उपाय बन चुका है। इसका संविधानिक मूल्य नहीं होने के बावजूद, यह पद राजनीतिक संतुलन और विशेष समुदायों के बीच सहमति की प्रक्रिया का हिस्सा बन गया है।

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