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2 किसानों ने ऑर्गेनिक फूट ककड़ी की खेती से कमाया मुनाफा, बैरानी खेत में ऑर्गेनिक फूट ककड़ी व राजस्थानी मतीरी की खेती कि शुरू

2 किसानों ने ऑर्गेनिक फूट ककड़ी की खेती से कमाया मुनाफा, बैरानी खेत में ऑर्गेनिक फूट ककड़ी व राजस्थानी मतीरी की खेती कि शुरू

खेत खजाना : फतेहाबाद, जांडली खुर्द के 2 किसानों ने मिलकर 3 साल पहले 5 एकड़ रेतीली बैरानी खेत में ऑर्गेनिक फूट ककड़ी व राजस्थानी मतीरी की खेती शुरू की थी। जिन्होंने कम लागत में प्राकृतिक फूट ककड़ी व राजस्थानी मतीरी की हजारों क्विंटल फसल बेचकर मालामाल हो गए हैं। जांडली खुर्द के किसान नबजीर सिंह पूनिया व नवीन पूनिया ने बताया कि चार वर्ष पहले परंपरागत खेती पानी के अभाव में पर्याप्त नहीं हो पाती थी और खर्चा भी अनाप-शनाप हो जाता था।

परंतु अब ऑर्गेनिक फूट ककड़ी व राजस्थानी मतीरी की खेती से प्रति एकड़ 70 हजार से लेकर 1 लाख के बीच में बचत हो रही है। बिजाई के बाद फसल में कोई खर्चा नहीं है। किसान बजीर सिंह पूनिया ने बताया कि फूट ककड़ी को जंगली छिपकली, गिलहरी व पक्षियों तथा नील गायों से नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। ऐसे में जरूरी है कि बुआई के बाद और फल आने के समय फसल की रखवाली करें।

पौधों में लाल व ऐपीलेकना भंग, सफेद व फल मक्खी और रस चूसने वाले कीटों के प्रकोप की आशंका बनी रहती है। इनसे बचाव के लिए खेत से ऑर्गेनिक सब्जियों की खेती शुरू की थी। फसल को कीड़ों से बचाने के लिए नीम की फली से तेल बनाकर उसका उपयोग में लिया और बाद में गोमूत्र में पानी मिलाकर उसका छिड़काव से कियाानीम पत्ती चूर्ण को 10 किलोग्राम राख के मिश्रण को टाट की थैली में भरकर सुबह के समय पौधों पर भुरकाव करें।इस खेती में खाद के रूप में गोबर की सड़ी हुई खाद और फसल के सड़े हुए अवशेष डालकर काम लिया गया।
शुरुआत में छोटी मोटी खेती करने वाली जांडली खुर्द गांव के दोनों किसानों ने फूट ककड़ी व राजस्थानी मतीरी की ऑर्गनिक खेती में शामिल कर लिया है।

सूखे फलों को उपहार के रूप में देने का भी चलन
शुष्क क्षेत्रों के लिए बागवानी फसलों में फूट ककड़ी से किसान हुए मालामाल जांडली खुर्द के किसान बजीर सिंह ने बताया कि फूट ककड़ी को काकड़िया, फूट, काचरा, डांगरा आदि नाम से भी जाना जाता है। इसके सूखे फलों को उपहार के रूप में देने का भी चलन है। इन सूखे फलों को खेलड़ा खेलरी कहा जाता है। फूट ककड़ी को रायता, सब्धी और सलाद के रूप में खाने के अतिरिक्त इसे सुखाकर रखने पर पूरे साल इस्तेमाल किया जा सकता है।

इतना ही नहीं, फूट ककड़ी की खेती की वैज्ञानिक तकनीकें अपनाकर इसकी बुवाई जनवरी से मार्च में की जा सकती है। इसके ताजा फलों की बाजार में उपलब्धता मार्च के अंत से नवम्बर महीने तक रखी जा सकती है। फूट ककड़ी उत्पादन और प्रोसेसिंग तकनीकी से ताजा फल विपणन, सूखाकर खेलड़ा बनाना, बीज, जैम व कैच-अप जैसे घरेलू उत्पादों से प्रति एकड लाखों रुपये तक की आय प्राप्त की जा सकती है।

तैयार कर सकते कई उत्पाद
जांडली खुर्द के किसान बजीर सिंह ने बताया कि फूट ककड़ी के पके फलों को ज्यादा दिनों तक ताजा सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। इसलिए तुड़ाई के बाद लंबे समय तक उपयोग में लाने के लिए इनकी प्रोसेसिंग किसान कर सकते हैं। फूट ककड़ी के फलों के गूदे से कैच-अप, जैम एवं निर्जलीकरण (सुखाना) से खेलड़ा तथा बीजों से गिरी तैयार की जा सकती है। इस तरह से घरेलू स्तर पर मूल्य संवर्धन से स्वरोजगार और लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

फूट ककड़ी गर्म और शुष्क मौसम की फसल है। इसलिए रेतीले बैरानी जमीन का वातावरण इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। यह फसल 35-40 डिग्री तापमान में भी उग जाती है। बीजों के अंकुरण के लिए 20-22 डिग्री सेल्सियस और पौधों व फलों के विकास के लिए 32-38 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। इसकी खेती के लिए रेतीली व बलुई-दोमट मिट्टी उपयुक्त हैं और खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। 6.5-8.5 तक पी.एच. मान वाली कम उपचाऊ मिट्टी में भी फूट ककड़ी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।“-डॉ. श्रवण कुमार, जिला बागवानी अधिकारी फतेहाबाद

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