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किसान बरसात आते ही न करें इन फसलों की बुवाई, हो जाता है इतना बड़ा नुकसान ! एक्सपर्ट से जानें

किसान बरसात आते ही न करें इन फसलों की बुवाई, हो जाता है इतना बड़ा नुकसान ! एक्सपर्ट से जानें

खेत खजाना : उतर प्रदेश में मानसून दहलीज पर है। किसान जल्द ही कल्टीवेटर चलाकर खेतों को बुवाई योग्य तैयार करने लगेंगे। लेकिन, किसानों को सोयाबीन, अरहर, तिल, उड़द, मक्का की बुवाई करते समय कुछ बातों का ध्यान देना जरूरी है। खासकर मिट्टी में पर्याप्त नमी आ चुकी हो या नहीं आई तो पर्याप्त नमी का अंदाजा होने पर ही बुवाई करें।

बुवाई के लिए उपयुक्त समय:

सोयाबीन: 100 मिमी वर्षा होने पर ही करें। परीक्षण में बीज का न्यूनतम 70% अंकुरण सुनिश्चित हो, तब ही बुवाई करें। सोयाबीन की बुवाई 25 जून से 10 जुलाई के बीच आराम से कर सकते हैं।
उड़द, मक्का: 10 साल से कम का बीज हो, उसी की बुवाई करें।
खाद और बीज उपचार:

पोषण प्रबंधन: अंतिम बखरनी से पहले गोबर की खाद 5-10 टन/हेक्टेयर या मुर्गी की खाद 2.5 टन/हेक्टर को खेत में अच्छी तरह फैला दें। कार्बनिक खादों के अतिरिक्त सोयाबीन के लिए जरूरी पोषक तत्वों (20:60:40:20 किग्रा/हेक्टेयर एनःपीःकेः सल्फर) की पूर्ति केवल बोवनी के समय करें।

बोवनी-बीजोपचार: 2-3 सेमी की गहराई पर बुवाई कर पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सेमी रखें। बीज दर 60-70 किग्रा/हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। बीज को अनुशंसित पूर्व मिश्रित फफूंदनायरक एजोक्सीस्ट्रोबिन 2.5%+थायोफिनेट मिथाइल 11.25% + कीटनाशक थायोमिथाक्जाम 25% एफएस (10 मिली/ किग्रा) बीज से उपचारित करें। अन्य विकल्प के रूप में अनुशंसित फफूंदनाशक पेनफ्लूफेन ट्राई फ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 38 एफएस (0.8- 1.0 मिली/किग्रा) बीज अथवा कार्बोक्सिन 37.5% + थाइरम 37.5% (3 ग्राम/किग्रा) बीज या कार्बेन्डाजिम 25% + मैन्कोजेब 50% डब्ल्यूएस (3 ग्राम/किग्रा) बीज से उपचारित करें। इसके बाद कुछ देर के लिए छाया में सुखाएं। फिर अनुशंसित कीटनाशक थायोमिथाक्जाम 30 एफएस (10 मिली/किग्रा) बीज या इमिडाक्लोप्रिड 48 एफएस (1.25 मिली/किग्रा) बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें।
अन्य महत्वपूर्ण बातें:

जल निकासी: खेत में जल निकासी का उचित प्रबंधन होना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण: बुवाई के बाद नियमित रूप से खरपतवार नियंत्रण करें।
निराई-गुड़ाई: निराई-गुड़ाई से मिट्टी में हवा का प्रवेश होता है और खरपतवारों का नाश होता है।
कीट नियंत्रण: समय पर कीटों का प्रबंधन करें।
रोग नियंत्रण: रोगों का प्रकोप होने पर समय पर उचित उपाय करें।

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