Ratan Tata Passes Away: देश के उद्योग जगत का ‘अनमोल रतन’ अब हमारे बीच नहीं रहे, 86 साल की उम्र में निधन
Ratan Tata रतन टाटा, टाटा समूह के मानद चेयरमैन और भारतीय उद्योग के महानायक का 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने टाटा समूह को वैश्विक ऊंचाइयों तक पहुंचाने में अभूतपूर्व योगदान दिया।
मुंबई, 11 अक्टूबर 2024 – भारत के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपतियों में से एक और टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा का आज 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे लंबे समय से उम्र से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे थे और बुधवार को उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद वे बच नहीं सके और आज उन्होंने अंतिम सांस ली। रतन टाटा अपनी सादगी, उदारता और उद्योग जगत में किए गए अभूतपूर्व योगदान के लिए हमेशा याद किए जाएंगे।
अस्पताल में भर्ती होने के बाद रतन टाटा का निधन
सोमवार को रतन टाटा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनके स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए उन्हें आईसीयू में भी रखा गया था। इससे पहले उन्होंने खुद सोशल मीडिया पर आईसीयू में भर्ती होने की खबरों का खंडन किया था, लेकिन बुधवार को उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और उन्हें एक बार फिर अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनकी हालत नाजुक बनी रही और तमाम प्रयासों के बावजूद डॉक्टर उन्हें नहीं बचा सके।
रतन टाटा: एक महान उद्योगपति और मानवतावादी
रतन टाटा सिर्फ एक उद्योगपति ही नहीं थे, बल्कि वे भारतीय उद्योग के एक महानायक और प्रेरणा के स्रोत थे। उनकी नेतृत्व क्षमता ने टाटा समूह को नए शिखरों तक पहुंचाया और उन्होंने कंपनी को वैश्विक स्तर पर मजबूत पहचान दिलाई। टाटा समूह का लैंड रोवर और जगुआर जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों का अधिग्रहण और भारतीय बाजार में दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो का निर्माण, उनके नेतृत्व की अद्वितीय उपलब्धियां थीं।
उनके नेतृत्व में ही टाटा इंडिका, जो भारत में बनी पहली पूर्ण रूप से स्वदेशी कार थी, का उत्पादन शुरू हुआ। यह भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए एक बड़ी सफलता थी। इसके साथ ही, टाटा स्टील, टाटा मोटर्स और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जैसी कंपनियों का भी वैश्विक विस्तार उनके योगदान का ही परिणाम था।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई मुंबई से की और बाद में अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर में बीएस की डिग्री हासिल की। इसके बाद वे हार्वर्ड बिजनेस स्कूल गए, जहां उन्होंने एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम से प्रबंधन की पढ़ाई की। 1961 में, वे टाटा समूह से जुड़े और 1991 में उन्हें टाटा समूह का चेयरमैन बनाया गया। वे 2012 में इस पद से रिटायर हुए, लेकिन टाटा समूह से उनका जुड़ाव हमेशा बना रहा।
सरल स्वभाव और दयालुता के प्रतीक
रतन टाटा की सादगी और सरलता ने उन्हें जनता के दिलों में एक खास स्थान दिलाया। उन्होंने हमेशा मानवीय मूल्यों को अपने व्यावसायिक फैसलों में प्राथमिकता दी। उनका मानना था कि किसी भी व्यापार का प्रमुख उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना नहीं, बल्कि समाज की भलाई में योगदान देना होना चाहिए।
उनकी परोपकार की भावना को भी कोई नहीं भुला सकता। टाटा ट्रस्ट्स के जरिए, उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण काम किए। उनकी दयालुता और मानवता के प्रति उनके अटूट विश्वास ने उन्हें सिर्फ एक उद्योगपति नहीं, बल्कि एक सच्चे मानवतावादी के रूप में स्थापित किया।
रतन टाटा को मिले सम्मान
रतन टाटा को उनके योगदान के लिए देश-विदेश में कई सम्मान प्राप्त हुए। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया। इन सम्मानों के अलावा, वे हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के एक प्रभावशाली अलुमनी भी थे और दुनिया भर में उनके नेतृत्व की सराहना की गई।
टाटा समूह का भविष्य
रतन टाटा के निधन के साथ, भारतीय उद्योग जगत ने एक ऐसे महानायक को खो दिया है, जिसने न केवल व्यापारिक ऊंचाइयां छुईं, बल्कि समाज और मानवता के लिए भी अद्वितीय योगदान दिया। उनका जाना एक युग का अंत है, लेकिन उनके आदर्श और उनके द्वारा स्थापित किए गए उच्च मानक हमेशा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।
अंतिम संस्कार और श्रद्धांजलि
रतन टाटा के निधन की खबर से पूरा देश शोक में डूबा है। उद्योग जगत, राजनीतिक क्षेत्र और आम जनता सभी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। उनकी अंतिम यात्रा मुंबई में उनके आवास से शुरू होगी और प्रमुख नेताओं और उद्योगपतियों द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी।
रतन टाटा का योगदान सिर्फ भारतीय उद्योग जगत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने देश और समाज के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन और कार्य हमें हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे। उनकी सादगी, विनम्रता और उद्योग के प्रति समर्पण, उनके व्यक्तित्व की पहचान थे। रतन टाटा का नाम भारतीय इतिहास में हमेशा स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।