कृषि समाचार

ड्रिप-मल्चिंग पद्धति से लहसुन की खेती: कम पानी में अधिक उत्पादन

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नई पद्धति से किसानों को हो रहा बड़ा लाभ

लहसुन की खेती में अब किसानों को एक नई तकनीक से फायदा हो रहा है, जिसका नाम है ड्रिप-मल्चिंग। इस पद्धति के द्वारा कम पानी और कम मेहनत में अधिक उपज प्राप्त हो रही है। जहां पहले पारंपरिक तरीके से लहसुन की खेती में ज्यादा पानी और अधिक समय लगता था, वहीं अब इस नई तकनीक से खेती को न सिर्फ़ आसान बनाया जा रहा है बल्कि यह जल संरक्षण में भी मददगार साबित हो रही है।

ड्रिप-मल्चिंग पद्धति क्या है?

ड्रिप-मल्चिंग पद्धति खेती में उपयोग की जाने वाली एक नई तकनीक है, जिसमें दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को एक साथ जोड़ दिया गया है। इसमें ड्रिप सिंचाई के द्वारा पौधों को सीधा पानी पहुंचाया जाता है, और मल्चिंग द्वारा जमीन की नमी को बनाए रखा जाता है। यह तकनीक विशेष रूप से उन क्षेत्रों में प्रभावी है, जहां पानी की कमी होती है।

ड्रिप सिंचाई:

ड्रिप सिंचाई में पानी सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। इससे पानी की बर्बादी नहीं होती और जड़ें भी गहराई तक सिंचित होती हैं।

मल्चिंग:

मल्चिंग प्रक्रिया में जमीन को प्लास्टिक या अन्य जैविक सामग्री से ढक दिया जाता है, जिससे जमीन की नमी बरकरार रहती है। इससे पौधे लंबे समय तक हरे-भरे रहते हैं और उत्पादन में वृद्धि होती है।

समयके साथ किसानों का रुझान खेती की उन्नत तकनीक की तरफ बढ़ा है। चायना की तर्ज पर क्षेत्र के किसान भी ड्रिप प्लॉस्टिक मल्चिंग पद्धति से लहसुन की खेती कर रहे हैं। ग्राम कुशलगढ़ में किसान ने 32 बीघा में इस पद्धति से लहसुन लगाई है। कुशलगढ़ के किसान खुशालचंद पाटीदार ने बताया दो साल पहले डेढ़ बीघे में प्रयोग के तौर पर इस पद्धति से लहसुन लगाई थी। तब अच्छे रिजल्ट मिले। इस बार 32 बीघा में ड्रिप मल्चिंग पद्धति से खेती कर रहे हैं। इससे खेती करने से उत्पादन अच्छा होता है और लहसुन की क्वालिटी भी बेहतर होती है। भाव भी अधिक मिलते हैं। सामान्यत : प्रति बीघा लहसुन का उत्पादन 20 क्विंटल होता है जबकि ड्रिप-मल्चिंग पद्धति से 30 से 35 क्विंटल रहता है। लहसुन का गांठ भी बड़े आकार का 100 से 200 ग्राम वजनी होता है।

उन्नततकनीक-खेत हंकाईकर मिट्टी को बारीक करें। एक-एक फीट दूर जमीन से 6 इंच ऊंचे मिट्टी के पौने तीन-तीन फीट चौड़े बेड बनाएं। एक बेड पर ड्रिप की दो नली लगाएं। ऊपर चार फीट चौड़ी प्लास्टिक बिछाएं। इसके दोनों छोर मिट्टी से दबाएं। फिर प्लास्टिक पर 8 इंच दूर छोटे-छोटे छेद करें। इसमें लहसुन की कली लगाएं। पहले महीने 8 दिन और दूसरे महीने 15 दिन में एक बार सिंचाई करें।

लागत और आय – प्रतिबीघा 40 हजार का ऊंटी प्रजाति का सवा दो क्विंटल बीज लगता है। 50 से 60 हजार ड्रिप मल्चिंग की लागत आती है। एक हजार रुपए प्रति बीघा लहसुन चौपने का खर्च। इस तरह प्रति बीघा में एक लाख का खर्च आता है और उत्पादन 30 से 35 क्विंटल होता है। 5 हजार रुपए क्विंटल भाव हो तो भी डेढ़ लाख की लहसुन होती है। एक बीघा पर 50 हजार रु. तक मुनाफा मिलता है।

उन्नतखेती के फायदे- पहलीबार मेहनत लगती है। इसके बाद निंदाई-गुड़ाई और कीटनाशक छिड़काव का झंझट। प्लास्टिक कवर के कारण खरपतवार नहीं उगता। कीटनाशक भी एक ही जगह से ड्रिप के मार्फत सीधे पौधों तक पहुंच जाता है। कम पानी में सिंचाई होती है। प्लास्टिक ऊपर से सफेद या सिल्वर होने से जरूरत अनुसार धूप लेता है। नीचे से काला होने से ज्यादा समय तक नमी रहती है। ड्रिप सिंचाई से मिट्टी पर परत नहीं जमती, मिट्टी भुरभूरी होने से लहसुन का बड़ा होता है।

खेत में इस तरह प्लास्टिक मल्चिंग पद्धति से लहसुन लगाई जा रही है।

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