कृषि समाचार

गेहूं व सरसों में दिसंबर मध्य से फरवरी अंत तक रहता है पीला रतुआ का प्रकोप, समय रहते करें बीमारी से बचाव

बारिश के बाद नमी बढ़ने से फसल में बढ़ जाती है पीला रतुआ बीमारी आने की संभावना

सर्द ऋतु की पहली बारिश गेहूं, सरसों और चने की फसल के लिए वरदान साबित होगी। एचएयू के वीसी प्रो. बीआर कंबोज एवं अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग के अनुसार बारिश की वजह से हवा में नमी बढ़ने व तापमान कम होने से गेंहू और सिरसों की फसल में पीला रतुआ बीमारी आने की संभावना बढ़ जाती है।
बारिश के बाद हवा में नमी 90 प्रतिशत व तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से 16 डिग्री सेल्सियस रहने से पीला रतुआ की फफूंदी के लिए बिल्कुल अनुकूल वातावरण बन जाता है, जिससे गेहूं की रोगग्राही किस्मों जैसे एचडी 2851, एचडी 2967, डब्ल्यूएच 711, पीबी डब्ल्यू 343 आदि किस्मों में बीमारी आने की पूरी संभावनाएं रहती हैं।

गेहूं वैज्ञानिक डॉ. ओपी बिश्नोई के पीला रतुआ एक फफूंद से फैलता है जो पहाड़ी क्षेत्रों से बादलों के साथ भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों जिसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश का मैदानी भाग आता है। इन क्षेत्रों में गेहूं की फसल को प्रभावित करता है।

यह फफूंदी वाली बीमारी दिसंबर मध्य से फरवरी अंत तक सक्रिय रहती है, जब तक तापमान 23 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ना चढ़ जाए। इस बारिश से गेहूं में फुटाव अच्छा होगा और हवा में घुली हुई नाइट्रोजन बारिश के पानी के साथ घुलकर पौधों पर गिरने से पत्तियों में जो पीलापन की समस्या है उसका स्वतः ही समाधान हो जाएगा।

पहला छिड़काव प्रोपिकोनाजोल का करें
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के वैज्ञानिकों द्वारा सिफारिश की गई दो दवाइयों में से किसी एक को प्रयोग करके अपने खेतों में बीमारी को नियंत्रण में करना चाहिए। इनमें पहली दवाई प्रोपिकोनाजोल (टिल्ट) 200 मिली लीटर या दूसरी दवाई नेटिवो 160 ग्राम को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ स्प्रे करें। 15 से 20 दिन बाद यही स्प्रे फिर करके अपने खेतों में बीमारी का पूर्ण नियंत्रण करें।

इसी तरह सरसों में सफेद रतुआ नामक बीमारी भी कम तापमान व अधिक नमी के कारण पौधों के पते नीचे की तरफ सफेद पाउडर के फफोले बन जाते हैं, जो बाद में फलियां बनते समय गुच्छे का रूप धारण कर लेते हैं, जिससे सरसों की पैदावार पर बहुत बुरा असर पड़ता। रतुआ बीमारी के निदान के लिए प्रारंभिक अवस्था में ही 800 ग्राम मेनकॉजब नामक दवा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ स्प्रे करने से इस बीमारी को नियंत्रण में लिया जा सकता है।

 

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