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Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पैतृक कृषि भूमि बेचने के नियम

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: पैतृक कृषि भूमि बेचने के नियम और प्राथमिकताएं। जानें, कैसे परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता दी जाएगी और भूमि विक्रय के नियम।

Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पैतृक कृषि भूमि बेचने के नियम

Supreme Court Decision : New Delhi, India – 11 January 2025: पैतृक कृषि भूमि बेचने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला आया है। इस निर्णय के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अब कोई कृषि भूमि किसे बेची जा सकती है और किसे नहीं। यह फैसला किसानों के लिए बेहद अहम है, क्योंकि इससे उनके खेत की जमीन को लेकर खरीद-फरोख्त के अधिकारों की स्पष्टता मिलती है।

कृषि भूमि बेचते समय किसे देनी होगी प्राथमिकता

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि यदि किसी हिन्दू परिवार का सदस्य कृषि भूमि बेचना चाहता है, तो उसे सबसे पहले अपने घर के अन्य सदस्य को इसे बेचने का अवसर देना होगा। यह आदेश हिमाचल प्रदेश से संबंधित एक मामले में दिया गया। अदालत ने निर्णय लिया कि भूमि के विक्रय की प्रक्रिया में परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

कब मिलता है कृषि भूमि पर परिवार के सदस्यों को हक

कानूनी प्रावधान के तहत, यदि किसी व्यक्ति का बिना वसीयत लिखे निधन हो जाता है, तो उसकी संपत्ति स्वाभाविक रूप से उसके परिवार के अन्य सदस्य को मिलती है। यदि परिवार का कोई सदस्य अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहता है, तो उसे पहले अपने परिवार के बाकी सदस्यों को इसका प्रस्ताव देना होगा। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि संपत्ति पहले परिवार के भीतर ही रहे, जिससे बाहरी व्यक्तियों को संपत्ति में हिस्सा देने से बचा जा सके।

प्रावधानलाभ
परिवार के सदस्यों को प्राथमिकतासंपत्ति परिवार के भीतर ही रहती है और बाहरी व्यक्ति हिस्सा नहीं ले पाते
अवैध कब्जों पर रोकअवैध कब्जों और फर्जीवाड़े के मामलों में कड़ी कार्रवाई की जाती है
धारा 22 का पालनसंपत्ति विक्रय में परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता दी जाती है

कृषि भूमि किस प्रावधान के अधीन बंटेगी

अदालत ने स्पष्ट किया है कि कृषि भूमि भी विशेष कानूनी धारा 22 के प्रावधानों के अधीन होगी। जब किसी को अपनी हिस्सेदारी बेचनी हो, तो उसे पहले अपने परिवार के सदस्य को ही प्राथमिकता देनी होगी। पुराने प्रावधान धारा 4 (2) के समाप्त होने से यह नियम प्रभावित नहीं होगा, क्योंकि यह प्रावधान भूमि पर अधिकारों से जुड़ा था। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परिवार की संपत्ति केवल परिवार के भीतर ही रहे, और बाहरी व्यक्ति इसमें भागीदार न हो।

पूरा मामला

इस मामले में एक व्यक्ति, लाजपत, ने एक संपत्ति खरीदी थी। उनके दो बेटे, संतोष और नाथू, थे। लाजपत के देहांत के बाद वह संपत्ति उनके दो बेटों को मिली। संतोष ने अपनी संपत्ति बाहरी व्यक्ति को बेच दी और नाथू ने इसका विरोध किया। नाथू ने अदालत में याचिका दायर की, जिसमें धारा 22 के तहत संपत्ति पर पहले अधिकार की मांग की। निचली अदालत ने याचिका पर निर्णय लिया और मामले को नाथू के पक्ष में फैसला किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी समर्थन किया।

 

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